कंगना रनौत की फिल्म ‘इमरजेंसी’ पर बड़ा विवाद, बैन करने की उठी मांग

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6 सितम्बर 2024 को रिलीज़ होने वाली कंगना रनौत की ‘इमरजेंसी’ फिल्म हाल ही में काफी चर्चा में है। फिल्म भारत के काले अध्याय ‘आपातकाल’ पर आधारित है। इंदिरा गांधी के कार्यकाल में 1975 से 1977 तक आपातकाल लागू किया गया था। आपातकाल की अवधि 21 महीनों की थी। भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में आपातकाल को काले अध्याय के रूप में याद किया जाता है। कंगना रनौत की फिल्म उसी काले अध्याय पर आधारित है। फिल्म में कंगना पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का किरदार निभा रही हैं। फिल्म इंदिरा गांधी के जीवन काल पर केंद्रित होगी। फिल्म का ट्रेलर बाहर आते ही सिख समूह की तरफ से फिल्म का विरोध दिखने लगा है। सिख समुदायों का कहना है कि फिल्म में सिखों को ऐतिहासिक रूप से गलत दिखाया गया है।
बॉलीवुड अभिनेत्री और बीजेपी सांसद कंगना रनौत अपने बेबाक चरित्र के लिए जानी जाती हैं। गलत के लिए आवाज़ उठाने और अपने विचार, कथन पर हमेशा अडिग रहती हैं। इसी वजह से कई बार उनका विरोध किया जाता है। उनकी फिल्म ‘इमरजेंसी’ भी उसका एक उदाहरण है। ‘इमरजेंसी’ एक ऐसा मुद्दा है जिस पर सिर्फ बात करना लोग टाल देते हैं। वहीं कंगना उस मुद्दे पर फिल्म लेकर आ रही हैं ताकि आज की पीढ़ी भारत के कुछ अनकहे इतिहास को जान सके।
हर ऐतिहासिक फिल्म पर कई सवाल उठाए जाते हैं। उसका विरोध किया जाता है। वहीं कंगना की फिल्म ‘इमरजेंसी’ के साथ भी हो रहा है। हाल ही में फिल्म को लेकर पंजाब में काफी विरोध हुआ था। सिख संगठनों ने इस फिल्म को बैन करने की मांग की। सिख संगठन का कहना है कि फिल्म में सिखों को ऐतिहासिक रूप से गलत दिखाया गया है। फिल्म में सिखों को राष्ट्रविरोधी और आतंकवादी के रूप में दिखाया है जिससे सिख समाज की भावनाओं को ठेस पहुंची है। उनकी हत्या उन्हीं के बॉडीगार्ड, जो एक सिख थे, उनके हाथों हुई थी, जिस पर आज भी दो मत हैं।
पंजाब की चिंगारी तेलंगाना तक पहुंची
पंजाब के बाद तेलंगाना में भी फिल्म का विरोध बढ़ता जा रहा है। तेलंगाना के एक सिख संगठन ने फिल्म को लेकर अपनी चिंताएं जताई हैं। पूर्व आईपीएस अधिकारी तेजदीप कौर के नेतृत्व में तेलंगाना सिख सोसाइटी के 18 सदस्यीय मंडल ने सचिवालय में सरकारी सलाहकार मोहम्मद आली शब्बीर से मुलाकात की और इमरजेंसी फिल्म को बैन करने की मांग की। तेलंगाना सरकार इमरजेंसी को बैन करने पर विचार कर रही है।
आपातकाल
25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक की 21 महीने की अवधि में भारत में आपातकाल घोषित था। तत्कालीन राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कहने पर भारतीय संविधान की अनुच्छेद 352 के अधीन आपातकाल की घोषणा कर दी। स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे विवादास्पद और अलोकतांत्रिक काल था। आपातकाल में चुनाव स्थगित हो गए तथा नागरिक अधिकारों को समाप्त करके मनमानी की गई। इंदिरा गांधी के राजनीतिक विरोधियों को कैद कर लिया गया और प्रेस पर प्रतिबंध लगा दिया गया। जयप्रकाश नारायण ने इसे ‘भारतीय इतिहास की सर्वाधिक काली अवधि’ कहा था।
मामला 1971 में हुए लोकसभा चुनाव का था, जिसमें इंदिरा ने अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी राज नारायण को पराजित किया था। लेकिन चुनाव परिणाम आने के चार साल बाद राज नारायण ने हाईकोर्ट में चुनाव परिणाम को चुनौती दी। उनकी दलील थी कि इंदिरा गांधी ने चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग किया, तय सीमा से अधिक पैसे खर्च किए और मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए गलत तरीकों का इस्तेमाल किया। अदालत ने इन आरोपों को सही ठहराया। इसके बावजूद इंदिरा गांधी टस से मस नहीं हुईं। यहाँ तक कि कांग्रेस पार्टी ने भी बयान जारी कर कहा कि इंदिरा का नेतृत्व पार्टी के लिए अपरिहार्य है।
सिखों द्वारा विरोध
सभी विपक्षी दलों के नेताओं और सरकार के अन्य स्पष्ट आलोचकों के गिरफ्तार किए जाने और सलाखों के पीछे भेज दिए जाने के बाद पूरा भारत सदमे की स्थिति में था। आपातकाल की घोषणा के कुछ ही समय बाद, सिख नेतृत्व ने अमृतसर में बैठकों का आयोजन किया जहां उन्होंने “कांग्रेस की फासीवादी प्रवृत्ति” का विरोध करने का संकल्प किया। देश में पहले जनविरोध का आयोजन अकाली दल ने किया था जिसे “लोकतंत्र की रक्षा का अभियान” के रूप में जाना जाता है। इसे 9 जुलाई को अमृतसर में शुरू किया गया था।
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