संसद के इसी सत्र में पेश हो सकता है वक्फ संशोधन बिल, 2 अप्रैल को सदन के पटल पर सरकार पेश कर सकती है बिल

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हाल ही में वक्फ संशोधन बिल काफी विवादों में घिरा हुआ है। कई मुस्लिम संगठन सरकार द्वारा वक्फ संशोधन बिल के विरोध में अपने प्रदर्शन को दर्ज करा रहे हैं। आज ईद के मौके पर भी मस्जिदों में नमाज़ पढ़ने आए व्यक्तियों ने अपनी बांह पर काली पट्टी लगाकर वक्फ बिल का विरोध किया। वहीं, मीडिया की खबरों की मानें तो 2 अप्रैल को सरकार लोकसभा में वक्फ बिल को पेश करने वाली है। लोकसभा में बजट सत्र का दूसरा चरण चल रहा है, अगर सरकार इसी सत्र में वक्फ बिल लाती है तो उसके पास 2 ही दिन होंगे बिल को दोनों सदनों में पास करवाने के लिए। साथ ही, सरकार को विपक्ष के हंगामे और सड़क पर प्रदर्शन के लिए भी तैयार होना पड़ेगा।
[वक्फ संशोधन विधेयक, 2024] को 28 अगस्त 2024 को लोकसभा में पेश किया गया। इस विधेयक से वक्फ अधिनियम 1995 में कुछ परिवर्तन किए गए हैं। बिल के आने के बाद से मुस्लिम वर्ग में खासा विरोध दिखाई दे रहा है। मुस्लिम संगठनों का कहना है कि इस बिल के माध्यम से सरकार वक्फ की जमीनों को हड़प लेगी। वहीं, सरकार का कहना है कि पिछले वक्फ नियमों में कई बदलावों की जरूरत है। कई नियम ऐसे हैं जो केवल अमीर मुसलमानों को ही फायदा पहुंचा रहे हैं और नीचे तबके के मुसलमानों को इसका लाभ नहीं मिलता। बिल में संशोधन करने से इसका लाभ नीचे के तबके तक पहुंचाया जा सकता है।
बिल पेश होने के बाद उसे जेपीसी (जॉइंट पार्लियामेंट कमिटी) में भेजा गया था और अब जेपीसी की रिपोर्ट के साथ बिल को पूर्णतः संसद के पटल पर रखा जाएगा।
अगर बिल सदन में पेश होता है तो बीजेपी का यह प्रयास रहेगा कि 2 ही दिनों में बिल दोनों सदनों में पास हो जाए। बीजेपी खुद के दम पर इस बिल को पास नहीं करवा पाएगी, उसे बिल को अंजाम तक पहुंचाने के लिए एनडीए के अन्य दलों की जरूरत पड़ेगी। वक्फ बिल के मुद्दे पर पहले से ही मुस्लिम संगठन नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू पर सरकार से बिल वापस लेने का दबाव बना रहे हैं, क्योंकि फिलहाल मोदी जी की सरकार इन दो दलों के समर्थन से चल रही है। पर अभी तक बिल के मुद्दे पर नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू दोनों सरकार के साथ खड़े होते दिखाई दिए हैं।
देखना दिलचस्प होगा कि इतने विरोध के बीच क्या बीजेपी इस बिल को पास करवा लेती है या फिर से बिल को जेपीसी में भेज दिया जाएगा।
वक्फ अधिनियम क्या है?
वक्फ एक्ट मुस्लिम समुदाय की संपत्तियों और धार्मिक संस्थानों के प्रबंधन और नियमन के लिए बनाया गया कानून है। इस एक्ट का मुख्य उद्देश्य वक्फ संपत्तियों का उचित संरक्षण और प्रबंधन सुनिश्चित करना है ताकि धार्मिक और चैरिटेबल उद्देश्यों के लिए इन संपत्तियों का उपयोग हो सके। [Source: Aaj Tak]
वक्फ अधिनियम में कमी
सरकार को पता चला है कि राज्य वक्फ बोर्डों को किसी भी संपत्ति पर दावा करने के व्यापक अधिकार मिले हैं, जिसकी वजह से अधिकांश राज्यों में ऐसी संपत्तियों के सर्वेक्षण में देरी हो रही है। साल 2013 में यूपीए सरकार में वक्फ बोर्ड की शक्तियों को बढ़ा दिया गया था। आम मुस्लिम, गरीब मुस्लिम महिलाएं, तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं के बच्चे, शिया और बोहरा जैसे समुदाय लंबे समय से कानून में बदलाव की मांग कर रहे थे। इन लोगों का कहना था कि वक्फ में आज आम मुसलमानों की जगह ही नहीं है, सिर्फ प्रभावशाली लोग हैं। [Source: Aaj Tak]
सरकार द्वारा वक्फ विधेयक में परिवर्तन के कारक
वक्फ का गठन: बिल में कहा गया है कि केवल वही व्यक्ति वक्फ घोषित कर सकता है जो कम से कम पाँच वर्षों से इस्लाम का पालन कर रहा हो। यह स्पष्ट करता है कि व्यक्ति को घोषित की जा रही संपत्ति का मालिक होना चाहिए। यह उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ को हटाता है। यह यह भी निर्दिष्ट करता है कि वक्फ-अलल-औलाद महिला उत्तराधिकारियों सहित उत्तराधिकारियों को वंचित नहीं करेगा।
वक्फ का सर्वेक्षण: अधिनियम के तहत वक्फ संपत्तियों का प्रारंभिक सर्वेक्षण करने के लिए सर्वेक्षण आयुक्त की नियुक्ति की जाती है। विधेयक सर्वेक्षण आयुक्त के स्थान पर जिला कलेक्टर को नियुक्त करता है।
सरकारी संपत्ति को वक्फ माना जाएगा: विधेयक में कहा गया है कि वक्फ के रूप में पहचानी गई कोई भी सरकारी संपत्ति वक्फ नहीं मानी जाएगी। अनिश्चितता की स्थिति में उस क्षेत्र का कलेक्टर स्वामित्व निर्धारित करेगा और राज्य सरकार को रिपोर्ट सौंपेगा। यदि उसे सरकारी संपत्ति माना जाता है, तो वह राजस्व रिकॉर्ड को अपडेट करेगा।
केंद्रीय वक्फ परिषद की संरचना: विधेयक में परिषद में नियुक्त सांसदों, पूर्व न्यायाधीशों और प्रख्यात व्यक्तियों के मुस्लिम होने की आवश्यकता को हटा दिया गया है। इसमें आगे कहा गया है कि दो सदस्य गैर-मुस्लिम होने चाहिए। साथ ही, परिषद के सदस्यों में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित की गई है।
ट्रिब्यूनल के आदेशों के खिलाफ अपील: अधिनियम के तहत, ट्रिब्यूनल के फैसले अंतिम होते हैं और उसके फैसलों के खिलाफ अदालतों में अपील करना प्रतिबंधित है। बोर्ड या पीड़ित पक्ष के आवेदन पर उच्च न्यायालय अपने हिसाब से मामलों पर विचार कर सकता है। बिल ट्रिब्यूनल के फैसलों को अंतिम मानने वाले प्रावधानों को हटा देता है। ट्रिब्यूनल के आदेशों के खिलाफ 90 दिनों के भीतर उच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है।
इसके अलावा भी कई छोटे-छोटे परिवर्तन किए गए हैं।
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- Himanshu Sangliya, holding a degree in Journalism at the graduation level and a postgraduate degree in Economics, is characterized by a strong work ethic and a persistent eagerness to acquire new skills. Journalism holds a special place in his heart, and he envisions his future flourishing within this dynamic field.
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