जब पत्रकार ही असुरक्षित हों, तो लोकतंत्र का रक्षक कौन?

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2025 में हुई भारतीय पत्रकार की हत्या

न्यूज़ इंडिया ऑफिसियल

पत्रकार समाज का रक्षक है, ऐसा अक्सर हम किताबों में पढ़ते और लोगों से सुनते आए हैं। लेकिन यहां सवाल है कि पत्रकारों का कौन रक्षक है? दरअसल, पिछले कुछ सालों में ऐसे तमाम मामले भारत के विभिन्न कोनों से सामने आए हैं, जहां पत्रकारों की निर्मम तरीके से हत्या कर दी गई। हालांकि, यह बात अलग है कि उन घटनाओं को देश-दुनिया के सामने तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया। हत्याओं को दुर्घटनाओं का रूप दिया गया। लेकिन, यह बात किसी से नहीं छिपी है कि किस कदर पत्रकारों के अधिकारों और उनकी जिम्मेदारियों का एक सिलसिलेवार तरीके से हनन किया गया।

इसी कड़ी में बात की जाए तो चाहे वह बिहार के पत्रकार राजदेव रंजन की हत्या हो या उत्तराखंड में पत्रकार राजीव प्रताप की मौत। यहां इन सभी घटनाओं से एक बात जरूर साफ है कि हमारे देश में पत्रकारों की सुरक्षा ख़तरे में है। यह एक कटु सत्य है और यहां हमें इस गंभीर मुद्दे पर चर्चा और बहस दोनों करने की आवश्यकता है। लेकिन प्रतीत होता है कि समाज इस बात पर जोर देना लाजमी नहीं समझता है।

आज भारत में एक समान सा पैटर्न देखने को मिलता है। जब घोटालों और अनैतिक कार्यों का पर्दाफाश किसी पत्रकार द्वारा किया जाता है, तब या तो उसे सरेआम मौत के घाट उतार दिया जाता है, या उसका शव किसी जंगल, नदी, नाले से बरामद होता है। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में, जहां पत्रकार एक अहम भूमिका निभाते हैं, देश को एक ही सूत्र में बांधे रखने तथा उसे जागरूक रखने का काम करते हैं। वहीं इसी जिम्मेदारी को निभाते हुए उसे मौत के घाट उतार दिया जाए, यह कितना सही, नैतिक और जायज है — आज समाज को यह बात समझने की आवश्यकता है।

अब पिछले पांच सालों के आंकड़ों पर गौर करें तो प्रेस स्वतंत्रता पर काम करने वाली संस्थाओं के डेटा से पता चलता है कि 2020 और 2025 के बीच भारत में कम से कम 20 पत्रकारों की हत्या हुई, जिनका सीधा संबंध उनके काम से था। यानी, साफ लफ्जों में कहा जाए तो अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करते हुए उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया।

इसके अलावा, दुनियाभर के प्रमुख संगठन जैसे कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स, राइट्स एंड रिस्क एनालिसिस ग्रुप और इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट्स आदि भारत में पत्रकारिता को एक गंभीर स्थिति में होने की बात करते हैं, जहां वह भारतीय पत्रकारों को एक जटिल परिस्थिति में देखते हैं।

इसी प्रकार रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स, जो हर साल विभिन्न मायनों को मद्देनज़र रखते हुए विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक जारी करता है, वह भारतीय मीडिया को राजनीतिक दिग्गजों द्वारा संचालित बताकर और भारत में पत्रकारों के साथ होते उत्पीड़न और हिंसा का हवाला देकर उसे 180 देशों में से 151वें स्थान पर अंकित करता है। हालांकि, कुछ आलोचक इस सूचकांक को पक्षपात का सूचकांक कहकर इसका खंडन करते हैं। लेकिन, पूरी तरह से इस आयाम को नकारना भी उनके लिए ग़लत है। आलोचकों को यहां यह बात समझने की आवश्यकता है कि जिस प्रकार से अमानवीय व्यवहार का भारतीय पत्रकार सामना कर रहे हैं, वह इस सूचकांक को कहीं न कहीं सही ठहराता है।

इसी कड़ी में देश के कुछ युवा इस सूचकांक तथा अन्य आंकड़ों की गंभीरता को समझते हैं। वह उस पहलू का पक्ष रखते हैं, जहां वह पत्रकारों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार, अन्याय और उनकी समस्याओं पर बात करना उचित समझते हैं। बृजेश गुप्ता, आदित्य शुक्ला, गौतम नवलखा, प्रबीर पुरकायस्थ उन युवाओं में कुछ नाम हैं, जो पत्रकारों के हित में अपना पक्ष प्रमुखता से रख रहे हैं।

आज भारत विकासशील से विकसित देश बनने की ओर अग्रसर है, जहां पत्रकार विकास को गति देकर देश में एक अहम भूमिका निभा रहे हैं। इस बीच पत्रकारों की सुरक्षा न केवल समाज को जागरूक रखने के लिए बल्कि समाज को विकास के पथ पर बनाए रखने के लिए जरूरी है।

मौजूदा समय में पत्रकारों के लिए पर्याप्त सुविधाओं की कमी और कानूनों के कमजोर कार्यान्वयन के कारण जमीन पर हालात चुनौतीपूर्ण बने हुए हैं। आज यह हमारा दायित्व होना चाहिए कि हम उन पत्रकारों का साथ दें, जो अपने कर्तव्य को निभाते हुए विषम परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं।

इसके लिए सबसे पहले पत्रकारों की सुरक्षा से जुड़ी नीतियों को सशक्त बनाने की आवश्यकता है। उन्हें वह वातावरण देने की आवश्यकता है, जहां वह बेबाकी से समाज को सच का आईना दिखा सकें।

चूंकि भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है, यहां लोकतंत्र की आभा पर कोई गलत प्रभाव न पड़े, इसके लिए पत्रकारों के हित हेतु विशेष सुरक्षा प्रावधान लागू करने और उनके खिलाफ होते हमलों के मामलों में त्वरित न्याय सुनिश्चित करने की जरूरत है। जैसा कि लोकतंत्र का वजूद सच से है, इसी सच के प्रहरी यानी पत्रकारों को सुरक्षित महसूस कराना इस वक्त की दरकार है।

Team Profile

Nikhil Rastogi
Nikhil RastogiNews Writer & Columnist
Nikhil Rastogi, a dynamic Journalist and Media enthusiast with a strong foundation in journalism. After graduating in Mass Communication from the Institute of Mass Communication and Media Technology, Kurukshetra University, Kurukshetra, he is currently pursuing his Master's in Journalism and Mass Communication from University of Lucknow. His passion for storytelling is evident from his regular contribution of informative articles to various media outlets. He has also contributed as a writer and journalist for reputed media organisations like Amar Ujala, Jansatta and The Pioneer.

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