डिजिटल युग में युवाओं की समाचार खपत पर लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्र का शोध

लखनऊ: शिक्षा और शोध की भूमि लखनऊ विश्वविद्यालय, एक बार फिर चर्चा में है। इस बार कारण बने हैं विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग के छात्र निखिल रस्तोगी, जिन्होंने अपने उत्कृष्ट शोध कार्य से न सिर्फ शिक्षकों को गौरवान्वित किया है, बल्कि मीडिया अध्ययन के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
निखिल रस्तोगी, जो वर्तमान में लखनऊ विश्वविद्यालय से मास्टर ऑफ जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन (MJMC) की पढ़ाई कर रहे हैं, का हालिया अध्ययन “A Study on News Consumption Patterns Among Youth in the Digital Age: Traditional vs New Media” नामक शीर्षक से सामने आया है, जिसने शैक्षणिक और मीडिया हलकों में व्यापक चर्चा को जन्म दिया है।
इस शोध में उन्होंने 18 से 30 वर्ष की आयु के युवाओं की समाचारों को ग्रहण करने की आदतों का गहन विश्लेषण किया है। अध्ययन, युवाओं के पारंपरिक और डिजिटल समाचार माध्यमों के प्रति रुझान को समझने की एक प्रभावी कोशिश है, जिसमें उनके समाचार चयन की प्राथमिकताओं, भरोसे और बदलते व्यवहार के कारणों को विस्तार से उजागर किया गया है।
यह शोध कार्य डॉ. सौरभ मालवीय, एसोसिएट प्रोफेसर, पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय के निर्देशन में पूर्ण हुआ। डॉ. मालवीय ने निखिल के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि “यह अध्ययन मीडिया में आ रहे बदलावों को समझने का एक सार्थक प्रयास है और पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए प्रेरणास्रोत भी है।”
शोध की प्रमुख झलकियां:
निखिल रस्तोगी के शोध में कई महत्वपूर्ण निष्कर्ष सामने आए हैं –
- 56.6% युवा समाचार प्राप्त करने के लिए पारंपरिक माध्यमों जैसे अखबार और टीवी की अपेक्षा डिजिटल प्लेटफॉर्म (जैसे न्यूज़ ऐप्स और सोशल मीडिया) का अधिक उपयोग करते हैं। इसकी प्रमुख वजह इन प्लेटफॉर्म्स की सहजता और त्वरित उपलब्धता बताई गई है।
- शोध में यह रोचक पहलू भी सामने आया कि 80% युवा अब भी पारंपरिक मीडिया को अधिक विश्वसनीय मानते हैं। उनका मानना है कि अखबार और टीवी जैसे माध्यम तथ्य-आधारित और संपादकीय जांच से गुज़रने वाले समाचार प्रदान करते हैं, जिससे उन पर भरोसा करना आसान होता है।
- टीवी समाचारों की गिरती लोकप्रियता और संक्षिप्त, इंटरैक्टिव सामग्री के प्रति युवाओं का बढ़ता रुझान भी अध्ययन में उभरकर सामने आया है।
शोध का उद्देश्य:
निखिल रस्तोगी ने यह शोध केवल अकादमिक कारणों से नहीं, बल्कि मीडिया उद्योग को वर्तमान पीढ़ी के रुझानों के अनुरूप ढालने की दृष्टि से भी किया है। उनका मानना है कि पारंपरिक मीडिया को यदि प्रासंगिक बने रहना है, तो उसे तकनीकी और प्रस्तुतीकरण के स्तर पर नए प्रयोग करने होंगे।
इस शोध के माध्यम से वे मीडिया संगठनों, शिक्षकों, पत्रकारों और नीति निर्माताओं को यह समझाने का प्रयास कर रहे हैं कि आज की युवा पीढ़ी किन माध्यमों से और कैसे समाचारों को ग्रहण करती है। उनके अनुसार, यह अध्ययन मीडिया के भविष्य को दिशा देने की क्षमता रखता है।
शिक्षकों की प्रतिक्रियाएं:
जनसंचार विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. मुकुल श्रीवास्तव ने इस शोध को युवाओं की मीडिया संबंधी आदतों को जानने की दृष्टि से अत्यंत मूल्यवान बताया। वहीं, डॉ. कृतिका अग्रवाल और डॉ. नीलू शर्मा ने भी इस शोध को मीडिया संस्थानों के लिए एक मार्गदर्शक अध्ययन बताया, जिससे युवा पाठकों और दर्शकों की सोच को बेहतर समझा जा सके।
निखिल रस्तोगी की भावनाएं:
अपने शोध को मिली सराहना से उत्साहित निखिल रस्तोगी ने कहा –
“यह अध्ययन आज के यथार्थ पर आधारित है। मैंने कोशिश की है कि युवाओं के बदलते समाचार उपभोग व्यवहार को तथ्यात्मक रूप में सामने रखूं ताकि मीडिया जगत इसे गंभीरता से समझ सके।”
अपने शिक्षकों के प्रति सम्मान प्रकट करते हुए उन्होंने कहा –
“मैं लखनऊ विश्वविद्यालय और अपने सभी शिक्षकों का आभार व्यक्त करता हूँ, जिन्होंने मुझे मार्गदर्शन और प्रेरणा दी। उनका अनुभव और सहयोग मेरे लिए बहुमूल्य रहा है।”
निखिल रस्तोगी का यह प्रयास आने वाले समय में मीडिया अनुसंधान और युवा पत्रकारों के लिए एक मिसाल बनेगा।
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