पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की पुण्यतिथि पर कांग्रेस नेता शाहनवाज़ आलम का भावुक बयान— “वो व्यक्ति नहीं, विचार नहीं, एक यात्रा थे”

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चंद्रशेखर की पुण्यतिथि पर विशेष: वैचारिक प्रतिबद्धता और विपक्ष की आत्मा को याद करने का दिन

नई दिल्ली, 8 जुलाई — आज पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की पुण्यतिथि पर कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव एवं बिहार सह प्रभारी शाहनवाज़ आलम ने एक विस्तृत राजनीतिक वक्तव्य जारी किया जिसमें उन्होंने चंद्रशेखर की वैचारिक प्रतिबद्धता, उनके योगदान, और मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों में उनकी विरासत के साथ हो रहे कथित छल को लेकर गहरा दर्द और आक्रोश प्रकट किया।

शाहनवाज़ आलम ने लिखा— “चंद्रशेखर जी जब प्रधानमंत्री बने तब हम 10 साल के थे। यानी चीज़ों को दृश्य के स्तर पर समझने की उम्र में दाख़िल हो ही रहे थे। अगले देढ़ दशक तक हमारी तरह बलिया के बहुत सारे लोगों के चेतन-अवचेतन को प्रभावित-परिभाषित उन्होंने ही किया।”

उन्होंने चित्तू पांडे चौराहे से रेलवे स्टेशन तक टीवी की दुकानों के बाहर जमा भीड़ का ज़िक्र करते हुए कहा कि किस तरह उनके भाषणों को सुनने के लिए पूरा इलाका सन्नाटे में डूब जाता था। शाहनवाज़ ने उस दौर को वैचारिक राजनीति का निर्णायक समय बताते हुए चंद्रशेखर को उन विरले गैर-कांग्रेसी नेताओं में शुमार किया जिन्होंने नेहरू के भारत की परिकल्पना की रक्षा के लिए संसद में अपना सर्वश्रेष्ठ दिया।

आलम ने कहा, “उन्होंने अंत तक अपनी प्रतिबद्धता निभाई, यहां तक कि अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार को अपने एक वोट से गिरा कर ये साबित भी किया,।”

उन्होंने रामविलास पासवान, जार्ज फर्नांडिज, शरद यादव और चौधरी अजित सिंह जैसे नेताओं की आलोचना करते हुए कहा कि ये नेता बाद में नेहरूविरोधी खेमे में चले गए, लेकिन चंद्रशेखर जी कभी भी संघ या भाजपा के पाले में नहीं आए।

शाहनवाज़ ने चंद्रशेखर की वैचारिक गहराई की सराहना करते हुए लिखा कि— “उनकी राजनीति का आधार कभी गैर कांग्रेसवाद जैसी भ्रामक और हल्की बुनियाद पर नहीं टिका था। और इसी कारण वो लोहियावादी व्यक्तिवाद से भी दूर रहे।”

उन्होंने यह भी उजागर किया कि चंद्रशेखर ने खुद लोहिया के व्यक्तिवाद की आलोचना की थी और बताया था कि प्रजा सोशलिस्ट पार्टी उसी व्यक्तिवाद के कारण समाप्त हो जाएगी।

जेपी आंदोलन की चर्चा करते हुए उन्होंने लिखा कि चंद्रशेखर उस आंदोलन का हिस्सा होते हुए भी संघ के प्रभाव से दूर रहे, जबकि जेपी के अधिकांश चेले “संघम शरणम्” हो गए—लालू यादव को छोड़कर।

चंद्रशेखर के साहस का उल्लेख करते हुए आलम ने बताया कि— “अपने 75वें जन्मदिन पर 2002 में विज्ञान भवन में आयोजित समारोह में उन्होंने प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से गुजरात दंगों पर इस्तीफ़ा मांगा, क्योंकि वाजपेयी ने प्रधानमंत्री नहीं, संघ के नेता की तरह व्यवहार किया था।”

शाहनवाज़ ने दुख व्यक्त किया कि आज चंद्रशेखर की वैचारिक विरासत का अपहरण हो रहा है। उन्होंने लिखा— “उनके अपने बेटे भाजपा में हैं। आजमगढ़ का एक छात्र नेता उनके नाम पर ट्रस्ट बना कर पहले सपा और अब भाजपा से एमएलसी बन चुका है। उनके भाषणों को चुरा कर किताब छपवा कर योगी से विमोचन कराया जा चुका है।”

उन्होंने आगे कहा— “मुख्यमंत्री जो ठाकुर जाति से आते हैं, उन्हें अपनी जाति का नेता साबित करने की कोशिश कर रहे हैं। बलिया के भाजपा समर्थक ठाकुर लड़के अब उनके बैनरों पर भगवा रंग लपेट चुके हैं, जबकि कभी ये लोग भाजपा विरोधी होने के कारण चंद्रशेखर के भी विरोधी थे।”

आलम ने चंद्रशेखर के बलिया स्थित आवास को याद करते हुए कहा कि वो झोपड़ी थी, जिसे अब उनके बेटे ने आलीशान मकान में तब्दील कर दिया है। उन्होंने सवाल किया— “एकमात्र ऐसे प्रधानमंत्री, जो आज भी जनमानस में विपक्ष के नेता की छवि रखते हों, उनके घर पर सत्ताधारी दल का झंडा लगा कर क्या कोई उन्हें अपने समीकरण में फिट कर सकता है?”

अपने वक्तव्य के समापन में शाहनवाज़ आलम ने लिखा— “चंद्रशेखर न व्यक्ति थे, न विचार। वो हमारे संवैधानिक मूल्यों के रास्ते पर निरंतर चलते रहने वाले एक महान यात्री थे। देश और समाज ऐसी ही यात्राओं से बनते हैं। चंद्रशेखर चलते रहने को प्रेरित करते हैं। जड़ लोगों के वारिस परिजन होते हैं, चलते रहने वालों के वारिस चलते रहने वाले होते हैं। आज उनकी पुण्यतिथि पर उनकी वैचारिक प्रतिबद्धता को याद कर समाज और राजनीति को बदलने का संकल्प लिया जाना चाहिए।”

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