बिहार विधानसभा चुनाव से पहले वोटर लिस्ट के विशेष गहन पुनरीक्षण को लेकर विपक्ष का आक्रोश

विधानसभा चुनाव से पहले बिहार की सियासत में तूफान खड़ा हो गया है। वोटर लिस्ट के पुनरीक्षण को लेकर पक्ष, विपक्ष आमने-सामने हैं। एक तरह विपक्ष ने केंद्र सरकार और चुनाव आयोग पर वोटर लिस्ट के पुनरीक्षण की आड़ में अल्पसंख्यक और गरीबों के वोट काटने की साजिश बता रहा है, वहीं दूसरी ओर सरकार और चुनाव आयोग इसे आम चुनावी प्रक्रिया कह रही है।
विपक्ष ने वोटर लिस्ट पुनरीक्षण के खिलाफ आज बिहार बंद का ऐलान किया था। बिहार के कई बड़े शहरों में चुनाव आयोग और सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किए, वहीं इंडी गठबंधन ने बीजेपी बिहार मुख्यालय और चुनाव आयोग के सामने शक्ति प्रदर्शन किया। शक्ति प्रदर्शन में इंडी गठबंधन के बड़े नेता, जिनमें तेजस्वी यादव, राहुल गांधी शामिल थे। वोटर लिस्ट पुनरीक्षण का पूरा मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुँच चुका है।
वोटर लिस्ट में पुनरीक्षण को लेकर विपक्ष काफी हमलावर दिखाई दे रहा है। विपक्ष का साफ मानना है कि केंद्र और चुनाव आयोग वोटबंदी करने का प्रयास कर रही है। वहीं चुनाव आयोग ने यह स्पष्ट किया है कि पुनरीक्षण चुनाव से पहले की एक आम प्रक्रिया है। दरअसल चुनाव आयोग हर चुनाव से पहले मतदान सूची को रिवाइज करता है, जिसमें फर्जी वोटरों के नाम हटाए जाते हैं और नए योग्य मतदाताओं को जोड़े जा सकें। इसी प्रक्रिया के अंतर्गत बिहार में 7.89 करोड़ मतदाताओं की सूची की पुनरीक्षण किया जा रहा है।
चुनाव आयोग के अनुसार लगभग 3.5 करोड़ के लगभग फार्म इस प्रक्रिया के दौरान जमा किए जा चुके हैं। इस प्रक्रिया में वोटर से पहचान और पते के दस्तावेज मांगे जा रहे हैं, जैसे आधार कार्ड, जन्म प्रमाण पत्र, माता-पिता के जन्म से जुड़े कागज़, या 1987 से पहले के राशन कार्ड और जमीन के दस्तावेज। चुनाव आयोग का कहना है कि 22 साल बाद हो रही यह प्रक्रिया मतदान सूची को शुद्ध करने के लिए जरूरी है।
इस मामले पर विपक्षी नेताओं के कई बयान सामने आए हैं – आरजेडी के नेता तेजस्वी यादव ने इसे वोटबंदी का नाम दिया है, उनका कहना है सत्ता पक्ष गरीब, दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक वोटरों को वोट देने से रोकने की चाल है, तेजस्वी ने इसे सत्ता पक्ष की साजिश बताया है जिसमें ओबीसी और अल्पसंख्यक के वोटों को काटा जा सके। AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी ने इसे नागरिकता साबित करने जैसे कदम बताया, जिससे अल्पसंख्यकों और कमजोर वर्गों को निशाना बनाया जा सकता है।
चुनाव आयोग की सफाई
चुनाव आयोग ने इन तमाम आरोपों को खारिज किया है। आयोग का कहना है कि SIR एक नियमित प्रक्रिया है, जो हर बड़े चुनाव से पहले होती है। इसका मकसद फर्जी वोटरों को हटाना और मतदाता सूची को पारदर्शी बनाना है। आयोग ने साफ किया कि 24 जून को जारी दिशा-निर्देशों में कोई बदलाव नहीं हुआ, और यह प्रक्रिया पूरी तरह सर्वसमावेशी है। चुनाव आयोग का कहना है कि बिहार में कोई भी योग्य वोटर छूटेगा नहीं।
बीजेपी का पूरे मामले पर बयान
BJP का कहना है कि विपक्ष को साफ-सुथरी मतदाता सूची से परेशानी है, क्योंकि उनके ‘फर्जी वोटर’ हट जाएंगे। वहीं, विपक्ष इस मुद्दे को जनता तक ले जा रहा है और चक्का जाम एवं प्रदर्शनों के जरिए जनता को यह समझाने की कोशिश कर रहा है कि यह प्रक्रिया उनके वोट के हक को छीन सकती है।
मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँचा
विपक्ष ने इस मसले को सुप्रीम कोर्ट में ले जाकर दांव खेला है। कपिल सिब्बल, महुआ मोइत्रा, और योगेंद्र यादव जैसे नेताओं ने याचिकाएं दायर की हैं, जिन पर 10 जुलाई 2025 को सुनवाई होगी।
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