उत्तर बिहार ग्रामीण बैंक, पातेपुर में बैंक और खाताधारकों दोनों की दयनीय हालत
पातेपुर, वैशाली (बिहार ): हम 21वीं सदी में हैं, आज सरकार और सरकारी तंत्र दोनों ही दिन-रात विकास और बेहतरी का दावा करते हुए थकते नहीं हैं। वहीं जमीन पर देखें तो उनके ये दावे धराशाई हैं। इस बात को प्रमाणित करता है बिहार के वैशाली जिले के पातेपुर प्रखंड में स्थित उत्तर बिहार ग्रामीण बैंक।
पातेपुर में ग्रामीण बैंक की स्थिति इतनी दयनीय है कि इसका वर्णन नहीं कर सकते। खाताधारकों की लंबी लाइन हमेशा लगी रहती है। मजाल है कि कोई काम एक दिन में हो जाए। जब तक खाताधारक चार से पांच दिन न दौड़े, कोई काम एक दिन में नहीं हो सकता। एक मामूली सा चेक बैंक में ट्रांसफर कराने में भी महीना लग जाता है, मगर चेक ट्रांसफर नहीं हो पाता।
बैंक में बहुत कई लोग ऐसे मिले जो लंबे समय से बैंक का चक्कर लगा रहे हैं कि उनका खाता बैंक में खुल सके मगर निराश होकर वे घर लौट जाते हैं। और जिनका खाता खुल रहा है उन्होंने बताया कि तीन से चार महीने बैंक का चक्कर लगाने के बाद आज खाता खुला।
आज जब मैं पातेपुर ग्रामीण बैंक की शाखा में पहुंचा, तो देखा कि खाताधारकों की भीड़ लगी हुई थी। वहीं, बैंक कर्मचारी गप्पे मार रहे थे। तस्वीरों में साफ देखा जा सकता है कि खाताधारकों की भीड़ लगी हुई हैं और बैंक कर्मचारी अपनी बातों में मशगूल हैं।
जब हमने एक खाताधारक उत्पल कुमार, जो स्वयं एक दिव्यांग हैं, से बात की, तो उन्होंने बताया, “मैं पिछले चार दिन से बैंक का चक्कर लगा रहा हूं और आज मुझे बहुत देर इंतजार करवाने के बाद चेक बुक दी गई।”
यह समस्या केवल पातेपुर शाखा की नहीं है, बल्कि बिहार के लगभग सभी ग्रामीण बैंकों की यही स्थिति है। खाताधारकों और जनता के प्रति न तो सरकार कोई जिम्मेदारी लेने को तैयार है और न ही सरकारी तंत्र।
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