15 अगस्त 1947: भारत की आज़ादी के 78 वर्षों की यात्रा, ब्रिटिश औपनिवेशवाद से संघर्ष से स्वतंत्रता तक

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15 अगस्त 1947 को भारत ब्रिटिश औपनिवेशवाद से आज़ाद हुआ था। 15 अगस्त 1997 वह तारीख थी जब पूरे देश की जनता ने आज़ादी की सुबह देखी थी। भारत की जनता ने आज़ाद भारत में अपनी पहली सांस ली थी। उस दिन अंग्रेजों के अत्याचारों और यातनाओं पर पूर्ण विराम लगा था। कई स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान का परिणाम है आज़ादी। लाशों के पहाड़ पर चढ़कर मिली है यह आज़ादी। हर वर्ष उस आज़ादी को पूरे भारत में एक त्योहार की तरह मनाया जाता है। उन सभी स्वतंत्रता सेनानियों को याद करते हुए, प्रधानमंत्री लाल किले पर तिरंगा फहराकर आज़ादी की परंपरा को निभाते हैं। 2024 में भारत को आज़ाद हुए 78 साल हो गए। 78 साल का सफर भारत का एक महत्वपूर्ण इतिहास है।
मेहमान आया घर पर कब्जा करने– भारत पर ब्रिटिश औपनिवेश का जाल कई सालों पहले बुना गया था। 17वीं शताब्दी में यूरोपीय व्यापारियों ने भारतीय उपमहाद्वीप को खोज लिया था। कई यूरोपीय जहाज भारत में अपनी उपस्थिति दर्ज कर चुके थे। उस समय के अंतराल में भारत में ब्रिटिश, डच, पुर्तगाली, फ्रांस और डेनिश का आगमन हुआ था। पर भारत को सबसे ज्यादा हानि ब्रिटिश औपनिवेशवाद में हुई थी। 17वीं शताब्दी के अंत तक सभी उपमहाद्वीपों पर ईस्ट इंडिया कंपनी ने सैन्य चौकियां बना ली थीं। एक व्यापारी के तौर पर आए कुछ विदेशी धीरे-धीरे भारत की जड़ों को खोखला करने लगे। वे व्यापार के बहाने भारत के सभी शासकों से मित्रता करते। उन्हें धन और हथियार का लालच देकर अपनी ओर कर लेते। जब शासक उनके कर्ज के नीचे दब जाता और उनका धन वापस नहीं कर पाता, तब वे उसके राज्य को अपने अधीन कर लेते। ईस्ट इंडिया कंपनी ने इसी तरह पूरे भारत को अपने अधीन कर लिया। और शुरू हुआ सबसे क्रूर औपनिवेशकाल, ब्रिटिश काल।
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम– 1857 का विद्रोह ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अन्यायपूर्ण शासन के खिलाफ भारत में एक शक्तिशाली विद्रोह था। 1857 का विद्रोह मुख्यतः उत्तरी और मध्य भारत तक ही सीमित था। वर्षों से भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की विस्तारवादी नीतियों, प्रशासनिक नवाचारों और आर्थिक शोषण के परिणामस्वरूप भारत के लोगों में असंतोष पैदा हुआ। यही असंतोष 1857 के विद्रोह के कारण के तौर पर माना जाता है। 1857 का विद्रोह एक विशाल और हिंसक विद्रोह था, जिसने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को हिला कर रख दिया था। कई भारतीय राष्ट्रवादियों ने इसे भारतीय स्वतंत्रता का पहला युद्ध माना। चूंकि विद्रोह एक सैन्य विद्रोह के रूप में शुरू हुआ था, इसे 1857 के सिपाही विद्रोह के रूप में भी जाना जाता है।
आज़ादी की लड़ाई का नया दौर– 1857 की क्रांति के बाद, 19वीं सदी में अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति की ज्वाला जल चुकी थी। गांधी, नेहरू, भगत सिंह, सरदार पटेल, लाल, बाल, पाल, गरम दल जैसे कई स्वतंत्रता सेनानियों ने आज़ादी की लड़ाई को अपने कंधों पर लिया। कई प्रयासों और बलिदानों के बाद आखिरकार भारत को 15 अगस्त 1947 को आज़ादी मिली और भारत एक स्वतंत्र और संप्रभु बना।
आज़ादी की कीमत– भारत को आज़ादी तो मिल गई लेकिन भारत को अपने टुकड़े कर इसकी कीमत चुकानी पड़ी। अंग्रेज जाते-जाते भारत के दो समुदायों में ज़हर घोल चुके थे। उनकी ‘डिवाइड एंड रूल’ वाली पॉलिसी, जिससे उन्होंने 200 से अधिक वर्षों तक भारत पर राज किया, उसी ज़हर को वे जाते-जाते लोगों के ज़ेहन में डाल गए। हिंदू-मुसलमान विभाजन जिसकी झलकियाँ आज भी हमें दिखाई देती हैं। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान मुस्लिम लीग, जिसका नेतृत्व जिन्ना कर रहे थे, ने अपने समुदाय के लिए एक अलग मुस्लिम राष्ट्र की मांग की। 1947 में उनकी मांग पूरी हुई, भारत का विभाजन हुआ और एक अलग राष्ट्र बना पाकिस्तान। विभाजन के दौरान कई लोगों को पलायन करना पड़ा, लाखों लोगों को मार दिया गया। दंगों और लाशों के ऊपर भारत का विभाजन किया गया।
स्वतंत्रता के बाद भारत की यात्रा– 15 अगस्त 1947 की आज़ादी के बाद भारत की बागडोर जवाहरलाल नेहरू ने संभाली। देश के प्रथम प्रधानमंत्री के तौर पर पंडित नेहरू ने लाल किले पर तिरंगा फहराया। वही परंपरा आज भी निभाई जा रही है। हर 15 अगस्त को भारत के प्रधानमंत्री लाल किले पर झंडा फहराते हैं और देश को संबोधित करते हैं। समय जैसे-जैसे आगे बढ़ता जा रहा है, वैसे-वैसे भारत भी अपने विकास में आगे बढ़ता जा रहा है। इस बीच भारत ने और भी कई अध्याय देखे, जिनमें आपातकाल, युद्ध, गरीबी शामिल हैं। हर अध्याय का भारतीय इतिहास में अपना महत्व है। आधुनिक समय में भारत ने अपनी रूपरेखा पूरी तरह से बदल ली है। आज भारत विश्व गुरु के रूप में उभर रहा है। भारत विश्व स्तर पर अपनी पहचान बना रहा है और अपने हितों की रक्षा कर रहा है। जो सपना स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने देश के लिए देखा था, आज भारत उसी विकास की राह पर है।
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- Himanshu Sangliya, holding a degree in Journalism at the graduation level and a postgraduate degree in Economics, is characterized by a strong work ethic and a persistent eagerness to acquire new skills. Journalism holds a special place in his heart, and he envisions his future flourishing within this dynamic field.
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