समान नागरिक संहिता का मुद्दा, सामाजिक या राजनीतिक?
प्रधानमंत्री मोदी द्वारा देश में समान नागरिक संहिता के पक्ष में बड़ा बयान, क्या होगा इसका प्रभाव?
बीते दिनों एक बार फिर समान नागरिक संहिता चर्चा का विषय बन गया क्योंकि हाल ही में देश के प्रधानमंत्री भोपाल में ‘मेरा बूथ सबसे मजबूत’ कार्यक्रम के दौरान पीएम मोदी ने देश में समान नागरिक संहिता को लेकर एक बड़ा बयान दिया। उन्होंने कहा “यूनिफार्म सिविल कोड के नाम पर लोगों को भड़काया जा रहा है, एक घर में दो कानून से घर नहीं चल पाएगा, भारत के संविधान में भी नागरिक के समान अधिकार की बात की गई है”।
क्या है समान नागरिक संहिता?– आसान शब्दों में कहें तो एक ही देश में रहने वाले नागरिकों के लिए एक जैसा कानून, तो सवाल यह है की क्या ऐसा नहीं है? भारतीय संविधान के अनुसार कानून के दो प्रकार है फौजदारी और दीवानी (civil and criminal law) जहां फौजदारी का आसान अर्थ लड़ाई, लूट, मर्डर यानि आपराधिक कानून उन अपराधों से संबंधित है जो समाज के विरुद्ध किये जाते हैं। इसमें किए गए अपराध के अनुरूप सजा का प्रावधान है। वहीं दीवानी का अर्थ जो घरेलू विवाद यानि पारिवारिक जैसे संपत्ति, धन आवास, तलाक, तलाक की स्थिति में बच्चे की अभिरक्षा आदि से संबंधित है। जैसे की पहले ये सवाल था की क्या सबके लिए इन कानूनों में एक समान सजा का प्रावधान है, तो इसका जबाब हैं नहीं, क्योंकि फौजदारी मामलों में तो समान अपराध की समान सजा है परंतु दीवानी में ऐसा नहीं है। इसमे केवल हिन्दू धर्म छोड़कर, अलग अलग समुदायों के लिए अलग अलग सजा का प्रावधान है। यहाँ हिन्दू का अर्थ भारतीय संविधान के अनुसार जो हिन्दू है (अनुच्छेद 25(2)b के तहत जैन, सिख, बौद्ध हिन्दू हैं, इसके अतिरिक्त हिन्दू मैरिज एक्ट सेक्शन 2 में भी बताया गया है कि हिन्दू कौन हैं वीरशैव, लिंगायत, आर्य समाज, प्रार्थना समाज, ब्रम्हा समाज) अन्य समुदायों के लिए अलग-अलग कानून है जो सदियों से उनके मान्यतों और ग्रंथों के माध्यम से चला आ रहा हैं।
समान नागरिक संहिता का राजनीतिक पक्ष– साल 1967 के आम चुनाव में, भारतीय जनसंघ ने अपने चुनावी मेनिफ़ेस्टो में पहली बार ‘समान नागरिक संहिता’ का स्पष्ट तौर पर उल्लेख किया था। घोषणापत्र में ये वादा किया गया कि अगर जनसंघ सत्ता में आती है तो देश में ‘यूनिफॉर्म सिविल कोड’ लागू किया जाएगा। उसके बाद कॉंग्रेस की सरकार आ गई और लंबे समय तक ये मुद्दा ठंडे बस्ते में पड़ा रहा। साल 1980 में बीजेपी की स्थापना के बाद एक बार फिर यूसीसी की मांग ने जगह बनानी शुरू कर दी। राम मंदिर निर्माण, अनुच्छेद 370 और समान नागरिक संहिता बीजेपी मेनिफेस्टो के ये तीन प्रमुख बिंदु रहे हैं। लेकिन पुनः 2014 में सत्ता में वापस लौटने के बाद 9 साल में यदाकदा इसकी चर्चा हुई परंतु जोर नहीं दिया गया। फिर 9 साल बाद ये चर्चा का विषय बना हुआ है, जब लोकसभा का चुनाव अगले साल ही होना है।
विपक्ष की राय– विपक्ष का हमेशा से कहना है की ये भारतीय विविधता को समाप्त कर देगा, जहां सबकी अपनी धार्मिक स्वतंत्रता है वही ये एक रंग में रंगने वाली प्रक्रिया है। जो भारतीय होने की पहचान को समाप्त कर देगा। गाहे बगाहे विपक्ष का बयान आता रहता है। चूंकि राम मंदिर और अनुच्छेद 370 का मुद्दा बीजेपी ने चुनावों में भरपूर भुना लिया है, ऐसे में पार्टी को एक ऐसा मुद्दा चाहिए था जिस पर ध्रुवीकरण किया जा सके, इस तरह की प्रतिक्रिया आती रहती हैं।
कानूनी पक्ष– समान नागरिक संहिता का उल्लेख भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 में किया गया है, जो राज्य की नीति के निदेशक तत्व का अंग है। अनुच्छेद 44 में कहा गया है कि राज्य को, ‘भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने की कोशिश करनी चाहिए’। भारत में गोवा एकमात्र ऐसा राज्य है जहाँ समान नागरिक संहिता लागू है। जिसे गोवा नागरिक संहिता के रूप में जाना जाता है।
Team Profile
Latest entries
- Hindi12 July 2023क्या बंगाल चुनाव हिंसा का पर्याय बन चुका है ?
- Hindi12 July 2023क्या 2024 का लोकसभा नहीं लड़ पाएंगे राहुल गांधी ?
- Hindi4 July 2023फ्रांस क्यों जल रहा है ?
- Hindi3 July 2023समान नागरिक संहिता का मुद्दा, सामाजिक या राजनीतिक?