भारत में विज्ञान की राह में इतने कांटे क्यों? | चाँद पर हमारे कदम, फिर अनुसंधान व विकास में हम क्यों है बेदम?

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Image Source: Live Science

आज से तकरीबन 46 साल पहले 70 के दशक में अभिनेत्री रेखा अभिनीत “घर” नामक एक फिल्म आई थी। जिसके बोल थे “आज कल पाँव जमीं पर नहीं पड़ते मेरे,बोलो देखा है कभी तुमने मुझे उड़ते हुए”; आज के भारत में “चंद्रयान-3” की इस उपलब्धि के संदर्भ में यह, गीत हम भारतीयों के खुशियों को जाहिर करने के लिए सबसे बेहतर साबित होगी। पर यह उड़ान इतनी भी आसान नहीं थी, भारत के लिए तो कतई भी नहीं था चूंकि जिस देश में अंतरिक्ष की यात्रा की शुरूआत ही दोपहिए साइकिल से हुई थी। आज वह देश अंतरिक्ष का “बादशाह” बनने की राह पर चल पड़ा है। पर इन उपलब्धियों के बीच भी एक खामोशी शोर करती है। और यह खामोशी है की, देश की इतनी बड़ी व बेहतरीन उपलब्धि के बाद भी अनुसंधान व विकास में लगातार बनी हुई उदासीनता की। अनुसंधान और विकास यानि विज्ञान, तकनीक व विशेषज्ञों की मदद से सामाजिक, आर्थिक, वैज्ञानिकी, और औद्योगिक व अन्य क्षेत्रों में लगातार सुधार व विकास की जारी प्रक्रिया। यह किसी देश के रूप में उसकी तरक्की मापने का एक जरूरी पैमाना होता है।  

आज भारत ने अपने मून मिशन के तहत चंद्रयान 3 लैंडर की सफलतम लैन्डिंग चाँद के सतह पर कर ली है। और इसी के साथ भारत ने कई कीर्तिमान अपने नाम किए।

यह भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम से जुड़ा एक बहुप्रतीक्षित मिशन था। जिसका इंतजार बेसब्री से भारत की 135 करोड़ जनता के साथ, दुनिया भर के तमाम अंतरिक्ष के प्रमुख संस्थान व विज्ञानी कर रहे थे। भारतीय समयानुसार 23 अगस्त की शाम 6 बजकर 4 मिनट पर जैसे ही बंगलुरु स्थित इसरो केंद्र से  वैज्ञानिकों की तालियों की गूंजी। वह देश भर में हो रही लाइव प्रसारित टीवी स्क्रीन से होते हुए, देश भर में खुशी – हर्ष का माहौल छा गया और इसके बाद दुनिया भर में भारत की अंतरिक्ष की दुनिया में सफलता और वैज्ञानिक मेधा की चर्चा होने लगी।

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यह भारत के सामरिक लिहाज से कई मायनों में बड़ी उपलब्धि के तौर पर देखा जा रहा चूंकि;   

अब भारत विश्व का पहला ऐसा देश बन चुका है, जो चाँद के दक्षिणी ध्रुव के निकट की सतह पर अपने कदम रखने में सफल हो पाया। और यह भारत के अथक प्रयास का ही नतीजा है कि अब काफी आसानी से वहाँ पानी के मौजूदगी के अंश जुटाएगा जिससे चाँद पर जीवन की गुंजाइश तलाशी जा सके। क्योंकि लैंडर चाँद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरा है जहां सूर्य का प्रकाश बेहद कम पहुँचती है, जिससे वहाँ बर्फ और पानी के अंश पाए जाने की गुंजाइश है।  

चूंकि, जब भारत जब विश्व में ऐसा करने वाला पहला देश बन चुका है। तो भारत उन देशों के क्लब में शामिल हो चुका है जिनका अंतरिक्ष कार्यक्रम से जुड़े अहम फैसलों में भागीदारी मजबूत होगी।  

आज जब भारत सहित विश्व में हमारे वैज्ञानिक मेधा की चर्चा ने जोर पकड़ा है, तो इन सब के परे हमारा यह भी जानना जरूरी है कि वो कौन कौन सी मूलभूत किन्तु बेहद जरूरी संस्थागत खामियाँ हैं, जो  भारत को अपने मानव, प्राकृतिक व सांस्कृतिक संसाधनों के समुचित उपयोग से वंचित कर रही हैं।

 आज के समय में भारत हो या दुनिया भर के तमाम देश हों; वे अपनी वैज्ञानिक, सामाजिक व आर्थिक खोज व सुधार और इनमे सबसे जरूरी “एक बेहतर अनुसंधान” व अनवरत विकास की प्रक्रिया के बलबूते ही ऐसा कर पाने में सफल हुए हैं। एक बेहतर अनुसंधान ही वह पहलू है, जो किसी देश के भौगोलिक व सामरिक स्थिति के इतर भी उसे एक शक्तिशाली व विकसित राष्ट्र के रूप में स्थापित कर सकता है। विश्व मानचित्र पर आज के समय में देखें तो,  इस्राइल इसके बेहतरीन उदाहरण में शामिल है। आज भले हीं चंद्रयान 3 की सफलता के लिए विश्व भर से काफी सराहना मिल रही हो पर असल सच्चाई तो यह है कि आज भी भारत अपने वैज्ञानिक व बौद्धिक मेधा का समुचित उपयोग कर पाने में पूरी तरह विफल रहा हैं।  तो वहीं जब इसकी असली वजह की तह में यह जाने पर यह मिलता है कि आज भी भारत संस्थागत व संगठित रूप से अनुसंधान व विकास की स्थिति काफी लचर है।  कहीं न कहीं व्यवस्था व तंत्र में अनेक परिवर्तन के बावजूद इसमें नीतिगत व ढांचागत खामियों की झलक दिखती ही है।  

ANRF 2023

हाल में, भारतीय संसद ने अनुसंधान नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (एएनआरएफ -2023) बिल पास हुआ। इस बिल का मुख्य उद्देश्य:

  • अनुसंधान के लिए उच्च स्तरीय रणनीतिक दिशानिर्देश
  • अनुसंधान में नए प्रयोग को बढ़ावा देना
  • भारत में अनुसंधान में ढांचागत बदलाव लाना 
  • शिक्षण में नवाचार के गुंजाइश को तलाशना

 ये सभी कदम देश में उन्नत अनुसंधान के माहौल के निर्माण के लिए केंद्रित है।

हालांकि, इस बिल की सफलता इसके अमल पर निर्भर करती है और यह किस प्रकार से अनुसंधान में वित्त संबंधी समस्याओं व जटिल प्रशासनीय प्रक्रियाओं से निपटने में सक्षम होती है।

सार्वजनिक वित्त पोषण पर निर्भर अनुसंधान कहीं न कहीं दो मोर्चों पर मात खाती है। पहला है अपर्याप्त अनुदान तो वहीं दूसरा है कठोर नियम व प्रावधान।

अनुसंधान व विकास के लिए दुनिया में एक आदर्श स्थिति तब होती है, जब कोई देश अपने कुल खर्च का 2% व्यय अनुसंधान व विकास कायों में करे; यह जरूरी भी है, अन्य देशों से प्रतिस्पर्धात्मक  मुकाबले के लिए। तो वहीं हम अमेरिका, इस्राइल, दक्षिण कोरिया और जर्मनी की आंकड़ों पर नजर डालें तो इनका अनुसंधान व विकास पर 3% से भी अधिक है। अगर इसी कड़ी में भारत के पिछले दो दशक के औसत खर्च को देखें तो यह महज 0.7% है, जो इन विकसित देशों की तुलना में बेहद कम है।

इस बिल के यानि (ANRF- 2023) के अमल करने के पहले चरण में सरकार ने अगले पाँच साल में अनुसंधान व विकास के क्षेत्र में 50,000 करोड़ का निवेश करना परिलक्षित किया है। यह विज्ञान व प्रोद्योगिकी मंत्रालय सालाना बजट 2023 के अतिरिक्त राशि है। जिसकी कुल आवंटित राशि 16,361 करोड़ है। हालांकि इन दोनों राशियों को जोड़कर भी, हमारा कुल व्यय 2% के आदर्श मानक के बराबर नहीं आता।

 इसी अभाव के पूर्ति के लिए निजी क्षेत्र से अनुसंधान व विकास में सहयोग लेने का प्रावधान किया गया है।  उदाहरण के लिए, अमेरिका और ब्रिटेन में 50% से आधिक अनुदान राशि निजी क्षेत्र व इकाईयां शामिल हैं, तो भारत में यह संख्या महज 35% के आसपास है।

हमारे देश में निजी क्षेत्र से अनुसंधान व विकास के क्षेत्र में सहयोग लेने हेतु सी.एस.आर यानि कॉर्पोरेट की सामाजिक जिम्मेदारी के तहत भी इसके प्रावधान पहले से मौजूद हैं। पर इसके तहत ये केवल एक वर्ष या इससे कम समयावधि के परियोजना में ही सहयोगी हो सकते हैं। सी.एस.आर यानि कॉर्पोरेट की सामाजिक जिम्मेदारी का अनुसंधान व विकास के क्षेत्र में लाभ तब उठाया जा सकता है। किन्तु यह उस स्थिति में किया जा सकता है, जब कानूनी तौर पर इसमें संसोधन के तहत इसे 3 से 5 वर्ष की समयावधि में बाँट दिया जाए, जिससे इसके लाभ को उठाया जा सके।  

Union Science and Technology Minister Jitendra Singh Discussing ANRF 2023

भारत में निजी क्षेत्र से अनुसंधान व विकास में बड़े स्तर पर स्वीकृति मिलने में अब भी अनेक अड़चने शामिल हैं।  

लंबे अरसे से , इस क्षेत्र से जुड़े विषय के जानकारों की शिकायत रही है कि अफसरशाही व लालफीताशाही ने देश में अनुसंधान के अनुरूप माहौल के विकसित होने में सबसे बड़ी रुकावट हैं।

विज्ञान प्रौद्योगिकी व नवाचार नीति-2020 (STIP-2020) के तहत इन मुद्दों को प्रमुखता से तरजीह दी गई और  यह तर्क पेश की गई।  

“अगर रिसर्च कार्यों के लिए पर्याप्त धन हो तो, अनुदान दाता व प्राप्तकर्ता दोनों तरफ से कम अफसरशाही व जवाबदेही होती है। इस बीच में समयबद्ध अनुदान की प्राप्ति व इसके खर्च के लिए लचीला तंत्र की जरूरत पड़ती है। “सामान्य वित्तीय नियम” में भी बदलाव की जरूरत है जिससे इसके खर्च सम्बधी नियमों में फंसे बिना समय पर सुचारु रूप से कार्यों को पूरा किया जा सके”

इसको और अच्छे से समझने के लिए हमे इस क्षेत्र के विज्ञान व रिसर्च के वैश्विक माहौल को समझना बेहद जरूरी है ।  उदाहरण के लिए अगर अनुसंधान व विकास के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा में हम किस प्रकार से पिछड़ जातें हैं तो हमें ऑक्सफोर्ड की आर्टफिसियल इंटेलीजेंस पर इस रिपोर्ट से हमे यह पता चला कि वर्ष 2017 में जहां सुपर कंप्युटर जटिल समस्याओं को सुलझाने के लिए 3 घंटे का वक्त लेते थे वहीं महज दो साल के भीतर यानि 2019 में घट कर महज 89 सेकंड रह गया। यह तेजी सुपर कंप्युटर की तकनीक व एल्गोरिदम्स में लगातार सुधार से ही संभव हो पाया। किन्तु हमारे देश में इसके खरीद की प्रक्रिया इतनी लंबी चली जाती है। जिससे इसके उपयोगकर्ताओं यानि वैज्ञानिक संस्थान तक पहुँचने से पहले अपना उपयोगिता व मूल्य खो देते हैं। संस्थागत व नीतिगत खामियों का यह नतीजा है की उपलब्ध तकनीक तक पहुँच बनाने के प्रयास व उस तकनीक तक वास्तव में पाने बीच काफी अंतर आ जाता है। अब जरूरत इस बात की होती है कि इस अंतर को पाट कर ही हम ऊपरी पायदान तक पहुँच सकतें हैं। 

वर्ष 1966 में विक्रम साराभाई ने तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी जी से कहा था “हमे बदलाव लाना होगा नीतियों में, प्रशासनिक कार्यकल्पों में, और सबसे अहम रवैये में”।  

-शुभम कुमार

Team Profile

Shubham KumarContent Editor
Shubham Kumar, a disciple of journalism, hails from Patna, Bihar. He graduated from the prestigious Delhi School of Journalism, affiliated with the University of Delhi. Shubham is known for his candid and responsible writing style, displaying a firm grasp of topics related to policy, health, environment, and youth.

Advocating for increased youth participation in journalism, Shubham firmly believes in practicing reliable, rational, and fair journalism. He is deeply committed to upholding these principles. Shubham is convinced that in a democratic country, journalism should have the freedom to express, write, and think in the public interest, even while being cautious of actions that may undermine the fundamental pillars of democracy.

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