पेपर लीक के शिकंजे में भारत का भविष्य
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किसी भी देश का भविष्य उसकी युवा आबादी पर निर्भर करता है। यहां युवाओं की यही आबादी देश के विकास और उन्नति को दिशा देती है। अब बात करें भारत की तो वह किसी भी अन्य देश की तुलना में सबसे अधिक युवा आबादी वाला देश है। यही कारण है कि खुद भारत सरकार भी मानती है कि भारत के आगे बढ़ने और विकसित होने की संभावनाएं अधिक हैं। लेकिन, युवाओं को किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता और पड़ रहा है? यहां सरकार बात करने और काम करने से मार खाती मालूम होती है। जहां इस अधिक युवा आबादी वाले देश में युवा चर्चा का विषय होना चाहिए, वह नहीं है। खैर, इस बात से हटकर पेपर लीक पर बात करते हैं, जो इन दिनों युवा परीक्षार्थियों का सिरदर्द बन गया है।
आज, आए दिन पेपर लीक से जुड़े मामले सामने आ रहे हैं। जहां कुछ लोगों द्वारा प्रश्नपत्रों को बेचा गया, वहीं कुछ लोगों द्वारा प्रश्नपत्रों को ख़रीदा जा रहा है। हालांकि, यह कोई नई बात नहीं है; पिछले कई दशकों से भारत में ऐसी घटनाएं हो रही हैं। लेकिन, बीते कुछ सालों में जिस प्रकार से पेपर लीक से जुड़े मामलों में उछाल आया है, वह कहीं न कहीं हालात को और बद से बदतर होने का प्रमाण देता नजर आता है। यहां तक कि खुद द गार्डियन भी इस बात की पुष्टि करता है, जिसके मुताबिक भारत में पिछले सात सालों में पेपर लीक से जुड़े मामलों में गिरावट आने के बजाय सिर्फ इजाफा ही हुआ है। जहां पिछले सात-आठ सालों में 70 से ज्यादा पेपर लीक हुए हैं, वहीं द गार्डियन के अनुसार शैक्षणिक संस्थान भी इस समस्या से अछूते नहीं रहे हैं। अब कहा जा सकता है कि परीक्षार्थियों एवं अभ्यर्थियों के लिए यह स्थिति बेहद निराशाजनक है। कुछ आधिकारिक रिपोर्ट्स की मानें तो यह तक मालूम पड़ता है कि कैसे और कितने बड़े पैमाने पर गत वर्षों में महत्वपूर्ण परीक्षाओं के पेपर लीक हुए हैं। बीते साल की बात करें तो नीट-यूजी, यूजीसी नेट उन्हीं कुछ चुनिंदा परीक्षाओं में शामिल थे, जिनके पेपर लीक हुए। इसी कड़ी में द इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार देशभर में 1.4 करोड़ आवेदक, जो 1.04 लाख से अधिक पदों के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे थे, उन्हें पेपर लीक के चलते काफी सामाजिक तथा आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ा।
यह आमतौर पर कहा जाता है कि किसी भी देश की परीक्षा प्रणाली ही वह अहम घटक होती है, जो उसके शैक्षणिक एवं व्यावसायिक ढांचे का भविष्य तय करती है। अब पिछले कुछ सालों में जिस तरह से भारत में परीक्षाओं के पेपर लीक हो रहे हैं, आखिर हमारा देश कहां खड़ा होता है? आज पेपर लीक भारत में कहीं न कहीं युवाओं के जीवन-यापन को सुगम बनने से रोक रहा है। इसके अलावा, परीक्षाओं को संचालित करने वाले संस्थान जो कभी विश्वास के पात्र थे, वह पेपर लीक के बीच कहां खड़े होते हैं? आज लोगों का विश्वास परीक्षाओं को संचालित करने वाले संस्थानों से उठ रहा है, जो बदले में उनकी ही प्रतिष्ठा पर आघात करता है। उदाहरण के रूप में नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए), जो हर साल स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए विभिन्न परीक्षाएं आयोजित करती है, आज बहुतायत संख्या में परीक्षाओं के पेपर लीक के चलते सवालों के घेरे में है। यही वजह है कि आज मजबूरन युवाओं को इन परीक्षा संचालन एजेंसियों के खिलाफ धरना प्रदर्शन करना पड़ता है। क्या इन संस्थानों को युवाओं का भविष्य नहीं दिखाई देता है? क्या सरकार को युवाओं की चिंता नहीं है? ऐसे कई सवाल इन प्रदर्शनों के द्वारा आज पूछे जाते हैं। खैर, वो अलग बात है कि सरकार एवं परीक्षा संचालन संस्थान इन सवालों का जवाब देना उचित नहीं समझते हैं।
इसके अतिरिक्त, आज जो पेपर लीक पर कार्रवाइयां, गिरफ्तारियां और दोबारा परीक्षा की मांग अभ्यर्थियों द्वारा उठाई जाती है, इस बीच किन परिस्थितियों से परीक्षार्थियों एवं अभ्यर्थियों को गुजरना पड़ता है, यह सरकार ने कभी सोचा है? शायद नहीं। आज वास्तविकता यह है कि युवाओं का भविष्य अंधकार में है, जहां इनकी आवाज सुनने वाला कोई नहीं है। आज भले ही पेपर लीक मामलों पर तमाम कार्रवाइयां हो रही हों, कसूरवारों को जेल के सलाखों के पीछे भेजा जा रहा हो। लेकिन जितने बड़े स्तर पर पेपर लीक हो रहे हैं, क्या यह कार्रवाइयां पर्याप्त हैं? आज मंजर कुछ ऐसा है कि इस परिदृश्य की जवाबदेही कोई नहीं है।
पेपर लीक के चलते जिन संवेदनशील परिस्थितियों और तनावपूर्ण स्थितियों से परीक्षार्थियों को गुजरना पड़ता है, उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है। इसी कड़ी में अगर आज हम इस स्थिति को मद्देनजर रखते हुए राजकीय दृष्टिकोण से देखें तो राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, तेलंगाना और गुजरात वह प्रमुख राज्य हैं, जहां परीक्षार्थियों को पेपर लीक ने अत्यधिक प्रभावित किया है। चूंकि अन्य भारतीय राज्यों के मुकाबले इन राज्यों में पेपर लीक की घटनाएं अधिक हैं, यहां परीक्षार्थी ज्यादा प्रभावित होते हैं और हो रहे हैं। गौरतलब है कि इन राज्यों में पेपर लीक माफिया ज्यादा सक्रिय हैं। इंडिया टुडे द्वारा किए गए एक स्टिंग ऑपरेशन के दौरान यह बात प्रमाणित भी हो जाती है।
आज कैसे कड़ी सुरक्षा के बीच एक सुनियोजित तरीके से प्रश्नपत्रों को परीक्षा संस्थानों से जुड़े कुछ भ्रष्ट कर्मचारियों, अधिकारियों, शिक्षकों और यहां तक कि प्रिंटिंग प्रेस कर्मियों द्वारा हासिल किया जाता है और कैसे एजेंटों के विस्तारित नेटवर्क द्वारा लोगों को बेचा जाता है, यह बात बेहद आश्चर्यजनक है। खैर, पेपर लीक एक ऐसी समस्या है, जिसका जिम्मेदार भी हम और कसूरवार भी हम हैं। आज हम में से ही कुछ लोग प्रश्नपत्रों की खरीद-फरोख्त में शामिल होते हैं। अगर देश का प्रत्येक नागरिक ईमानदारी का दामन थाम ले और भ्रष्टाचार का चोला उतार फेंके, तो पेपर लीक जैसी सामाजिक घटनाओं का होना तो दूर, पनपना भी असंभव होगा। हालांकि, जिस प्रकार से पिछले कुछ दशकों से भारत भ्रष्टाचार बोध सूचकांक में अपनी जगह बनाए हुए है, यह एक सुखद स्वप्न से ज्यादा कुछ नहीं लगता है।
पेपर लीक एक अत्यंत गंभीर विषय है। आज जिस तरह से प्रश्नपत्रों की ड्राफ्टिंग, प्रिंटिंग और रखरखाव के दौरान प्रश्नपत्रों को लीक कर दिया जाता है, वह लोगों की उम्मीद और उनकी बरसों की मेहनत पर पानी फेर रहा है। अब यह कहना बिल्कुल भी गलत नहीं होगा कि यह एक ऐसी समस्या है, जो दिन प्रतिदिन थमने का नाम तो दूर, विकराल रूप ले रही है। चूंकि इससे हजारों छात्र व अभ्यर्थी प्रभावित हो रहे हैं, यह एक ऐसी बड़ी चुनौती है, जिस पर तुरंत कार्रवाई करने की जरूरत है। अगर आज कुछ नहीं किया गया, तो मेहनत कर रहे बच्चों का जीवन इस कदर ही प्रभावित होता रहेगा और अंततः उनका भविष्य अंधकार की कालिमा में नष्ट हो जाएगा।
हालांकि, सरकार एवं संबंधित संस्थान इस ओर प्रयास तो कर रहे हैं, लेकिन अभी भी एक कड़े कानून तथा कड़ी कार्रवाई की आवश्यकता है। हाल ही में सरकार ने परीक्षाओं में पेपर लीक और धोखाधड़ी से निपटने के लिए सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) अधिनियम, 2024 पेश किया है। इस अधिनियम के अंतर्गत अगर कोई व्यक्ति पेपर लीक या किसी भी अन्य गैरकानूनी कार्यों में शामिल होगा, जो परीक्षाओं को प्रभावित करता है, तो वह व्यक्ति ₹10 लाख से ₹1 करोड़ तक जुर्माना और 5 से 10 साल तक की कैद का उत्तरदायी होगा। इसके अतिरिक्त, अगर कोई व्यक्ति किसी गैर-कानूनी कृत्यों को संचालित करता है, जिससे शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित होती है, तो वह भी कानूनी कार्रवाई के दायरे में लाया जाएगा।
आज पेपर लीक पूरे भारत के लिए सिरदर्द बन चुका है। एक अनुमान के मुताबिक, पिछले कुछ वर्षों में विभिन्न परीक्षाओं के पेपर लीक के दौरान करीब 1.5 करोड़ से अधिक छात्र प्रभावित हुए हैं। परीक्षा और उसकी व्यवस्था में सुधार न होने के कारण और उसमें खामियों के चलते आज युवाओं के बीच असमंजस की स्थिति पैदा हो गई है। जहां एक तरफ उनको ऐसी परीक्षा प्रणाली का सामना करना पड़ रहा है, जो भ्रष्टाचार से ग्रस्त है, वहीं दूसरी तरफ निरंतर परीक्षा पेपरों में होती सेंधमारी युवाओं का मनोबल तोड़ रही है। यह खामियां इतनी बड़ी हैं कि अगर जल्द कुछ नहीं किया गया, तो आने वाले वक्त में इससे समाज में दुष्परिणाम उत्पन्न हो सकते हैं। इन्फॉर्मेशन मैटर्स की एक रिपोर्ट यह तक दावा करती है कि आज जो अवसाद और आत्महत्या की प्रवृत्ति छात्रों के बीच पनप रही है, वह उनके द्वारा सामना की जाने वाली इन भारी चुनौतियों और दबावों की एक गंभीर तस्वीर पेश करती है।
यहां जरूरत है कि सरकार एवं परीक्षा संबंधित संस्थान अपने कार्यों में निष्पक्षता, पारदर्शिता और जवाबदेही जैसे गुणों का अनुसरण करें तथा भ्रष्टाचार जैसे अवगुण का त्याग करें। दिन प्रतिदिन बढ़ रहे पेपर लीक के मामले गंभीर हैं, जिस पर सरकार को गंभीरता से विचार करना चाहिए। अभ्यर्थी, जो ईमानदारी से मेहनत कर अपने सपने को साकार बनाने का प्रयास कर रहे हैं, उनके लिए पेपर लीक एक अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्दा है। आज इस समस्या की ओर न्याय की दरकार है। हजारों ख्वाहिशें इसी एक आधार पर निर्भर हैं। कुल मिलाकर, इस समस्या का समाधान हो, अन्याय का पतन हो और न्याय का उत्थान हो, यही इस वक्त की एकमात्र आवश्यकता है।
Team Profile
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- News Writer & Columnist
- Nikhil Rastogi, a dynamic Journalist and Media enthusiast with a strong foundation in journalism. After graduating in Mass Communication from the Institute of Mass Communication and Media Technology, Kurukshetra University, Kurukshetra, he is currently pursuing his Master's in Journalism and Mass Communication from University of Lucknow. His passion for storytelling is evident from his regular contribution of informative articles to various media outlets. He has also contributed as a writer and journalist for reputed media organisations like Amar Ujala, Jansatta and The Pioneer.
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