नारीवादी विचार पर हमले के लिए कैसे एसडीएम ज्योति मौर्य बनी मोहरा? अर्धसत्य जो छिपता जा रहा
जानिए इस मुद्दे पर अश्लील गानों से हिन्दी पट्टी में खतरे में विवाहित महिलाओं का भविष्य।
ज्योति मौर्य, आज के समय में यह नाम हर जुबान पर चस्पा है, और हो भी क्यों न? जाहिर है की इस मामले में प्रतिदिन नए ऐंगल व तथ्य मिल रहे। जो इस मामले की गुत्थी और सत्यता की खोज को और बेहद पेचीदा बना रहे, क्योंकि आज के समय यह मामला देश-दुनिया में चर्चा बटोर रहा है। इसका अंदाजा केवल आप इसी से लगा सकते हैं की यह मामला कई दिनों तक भारत में सोशल मीडिया व खासकर ट्विटर ट्रेंड में रहा। हालांकि इस मामले में लोगबाग भी अपने तरीके से हर माध्यम से अपनी अपनी राय बना रहें हैं। आज के इस रिपोर्ट से आप समझेंगे की क्या है इस मामले की गंभीरता? और आखिर किस प्रकार देश की अन्य महिलाओं के और बेहद अहम दाम्पत्य जीवन में जहर घोल रहा?
जिस प्रकार से इस मामले में आमलोग राय बनाने में जल्दबाजी कर रहे हैं। इस प्रकार से इसके दूरगामी परिणाम व गंभीर खतरे को लेकर समाज व देश अनजान है और एक कदम बढ़कर कैसे इस मामले से प्रेरित अश्लील गानों के निर्माण से हिन्दी पट्टी में विवाहित महिलाओं की शिक्षा व विकास संबंधी अभियान कार्यक्रमों को धक्का पहुँच रहा व महिलाओं की स्वतंत्रता खतरे में पड़ रही? अगर अपने देश में इससे संबंधी आंकड़ों की बात करें तो मानव संसाधन विकास मंत्रालय की एक प्रेस रिलीज़ के मुताबिक यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इन्फॉर्मेशन सिस्टम फॉर एड्युकेशन की वर्ष 2015-16 की रिपोर्ट में बताया गया कि भारत में लड़कियों के स्कूल छोड़ने की सालाना औसतन दर (ड्रॉप आउट रेट) 16.88% फीसदी है। यह तब की स्थिति है जब सरकार व एजुकेशन सिस्टम लड़कियों के लिए दर्जनों योजनाओं का दावा करते नहीं थकती। आंकड़ों से परे अगर जमीनी हकीकत की बात करें तो इसके सामाजिक व आर्थिक पहलू भी हैं, जो लड़कियों की शिक्षा व विकास के अनुकूल नहीं बनाते।
क्या है इस मामले पर वर्तमान स्थिति?
यूपी के पंचायती राज विभाग में कार्यरत चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी आलोक मौर्य ने बरेली में तैनात पत्नी ज्योति मौर्या (पीसीएस अधिकारी) और उनके प्रेमी मनीष दुबे (होमगार्ड कमांडेंट) पर हत्या की साजिश रचने का आरोप लगाया है। पीड़ित पति ने धूमनगंज थाने के अलावा होमगार्ड मुख्यालय में भी इसकी तहरीर दी है। बता दें कि साल 2015 में आलोक मौर्या की पत्नी का यूपीपीसीएस परीक्षा में चयन हुआ था।
कई जिलों में SDM रहने के बाद ज्योति वर्तमान में बरेली के शुगर मिल में जीएम के पद पर तैनात हैं। पीड़ित पति का आरोप है कि पीसीएस अधिकारी का प्रेमी गाजियाबाद में होमगार्ड कमांडेंट के पद पर तैनात है और इसी अधिकारी के साथ उसकी पत्नी का अवैध रिश्ता है।
इसके मामले से उत्प्न्न अन्य नारी केंद्रित खतरे:
हालांकि, ज्योति मौर्य किस्म का केवल यह पहला मामला नहीं हैं, इस देश में जब किसी मुद्दे को महिलाओं के विरुद्ध सोशल मीडिया पर एक प्रकार के माध्यम से पुरुष समाज में महिलाओं की शिक्षा से परहेज करने के लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे हों। इसके झांसे में आकर लोग जो ज्यादातर पुरुष ही हैं, सभी प्रकार की वास्तविकता को भूल कर, भले ही यह उनके जीवन में कोई भी मायने न रखता हो लेकिन वे भी इस मामले पर नफरती राय रखने या बनाने से परहेज नहीं कर रहे। और यह मामला एक प्रकार से नफरत फैलाने का औजार बनता जा रहा।
इस मामले में कैसे सोशल मीडिया एक खबर का माध्यम या ई-जहर?
“ऑनलाइन कंटेन्ट” जी हाँ वही जो इस वक्त किसी भी व्यक्ति, वस्तु, स्थान के बारे में एक आम जनता में खास प्रकार के धारणा के निर्माण के लिए काफी है और इसे वायरल बनाते हैं, रील, यूट्यूब के शॉर्ट्स जैसे फीचर जो इसके तुरंत प्रसारित होने की वजह बनते हैं और सबसे अहम यह हो जाता है की जिन खबरों को लोग चाव से पढ़ते या देखते हैं, इन सोशल मीडिया पर यही ऑनलाइन कॉन्टेट तथाकथित “क्रीऐटरों” द्वारा मूल जानकारी से छेड़छाड़ करके दर्शकों और पाठकों के सामने परोस दिया जा रहा। अगर इन छोटे-छोटे विडिओ या रील्स के बनाने के पीछे के उद्देश्य जानने की कोशिश करें तो पाएंगे की ज्यादातर क्रीऐटर इसे हास्य व वर्तमान चीजों के बारे में जागरूक या ट्रेंड को फॉलो करने या प्रासंगिक मुद्दों पर दर्शकों की पसंद का हवाला देते हैं। यह सोशल मीडिया पर केवल इक्के दुक्के क्रीएटरों व इंफ्लुएंसरों तक सीमित नहीं है, यह इससे कहीं ज्यादा नफरती व कुंठित विश्वास को पुरुष दर्शकों के बीच रील्स व अश्लील गानों से बड़े ही साफगोई से परोस दिया जा रहा। साफ़गोई इसलिए भी, क्योंकि इन क्रीऐटरों पर किसी भी प्रकार की कार्यवाई का समुचित विधान नहीं और अगर उपलब्ध है भी तो काफी प्रकार की अनियमितता व कानूनी पेचीदगियों की वजह से ये लोग बच निकलते हैं। वर्तमान में सोशल मीडिया को देखें, जो आज कल के समय में लघु स्तर पर विडिओ का उत्पादन करना काफी हद तक आसान बना दिया है, और यह कम पढे-लिखे या कहें एक अनपढ़ व्यक्ति भी गाने बिना किसी खास संसाधन में बनाने लगें हैं;
उदाहरण के तौर पर, यूट्यूब पर काफी ऐसे चैनल हैं जो महज छोटे सब्स्क्राइबर रखते है किन्तु उनके इन विडिओ पर 3 लाख से भी ज्यादा व्यूज मिल चुके हैं, तो वहीं एक अन्य विडिओ जो राजा फिल्म स्टूडियो के नाम से चैनल है जो महज 8 दिन में 40 लाख से भी ज्यादा व्यूज पा चुके हैं, जिस रफ्तार से इन विडिओ को बनाकर जो अश्लील से लेकर ट्रेंडिंग तक के विडिओ होते हैं। उन्हे ये बमुश्किल कुछ ही घंटों में बना कर मिलियन व्यूज बटोर ले रहे हैं और यह चिंता किए बगैर की इन विडिओ को देखने वाले दर्शक किस स्तर तक प्रभावित हो सकते हैं और अगर नमूने के तौर पर देखें तो भोजपुरी में काफी ऐसे गाने बन चुके हैं जिनमें महिलाओं के चरित्र वर्णन के लिए इन घटनाओं से अश्लील बना दी जा रही और इनमें काफी अपशब्द व अश्लील शब्दों का उपयोग किया जा रहा या कहें तो ये लोगों के बीच यह मामले को व्यक्त करने के लिए मिर्च मसाले की तरह प्रयोग होता है। जहां लोग व इनके दर्शक इन्ही गानों से मामले की सभी मूल जानकारी समझ लेते है । धड़ल्ले से यह सोचे बगैर की यह सभी दर्शकों की जिंदगी की असल हकीकत को बयां नहीं करते। जब हमने कुछ इन्ही यूट्यूब चैनल से सम्पर्क किया तो कुछ ने इस मुद्दे पर बात करने से साफ इंकार कर दिया तो कुछ ने यह बताया कि इन गानों की डिमांड दर्शकों की ओर से ही होती तो ये बनाते हैं। हालांकि वजह चाहे जो भी हो, इन विडिओ के कमेन्ट बॉक्स में यह साफ दिखता है कि महिलाओं की शिक्षा, रोजगार व स्वतंत्र सोच को लेकर काफी नफरती व अश्लील प्रकार से निशाना बनाया जा रहा अगर आप यह सोच रहे की इन गानों को केवल पुरुष गायकों द्वारा बनाया जा रहा तो यह बिल्कुल गलत है, बल्कि हक़ीकत में इन गानों में महिला गायकों ने भी आवाज दी है।
किसी भी सेन्सरशिप के खतरों से कोसों दूर होना भी इन गानों का निर्माण को आसान बनाता है। इन वीडियोज़ के वायरल होने के वजह से महिलाओं की रोजगार संबंधी बाधा का एनेलिसिस करें अगर देखें तो पाते हैं की हिन्दी पट्टी को सबसे ज़्यादा खतरा देखने को मिलता है। आज भी बिहार, यूपी व मध्य प्रदेश जैसे हिन्दी भाषी सरीखे राज्यों में आज भी महिलाओं की एक बड़ी आबादी अपनी स्वास्थ्य व शिक्षा जैसे मूलभूत फैसलों के लिए भी घर के पुरुषों पर निर्भर हैं। जो कहीं न कहीं मूलभूत सुविधाओं के अभाव व पिछड़ेपन के कारण भी है।
इसकी गंभीरता आप इस वाकये से भी समझ सकते हैं की यूट्यूबर व मशहूर शिक्षक खान सर की ऑफलाइन क्लास जो पटना में पढ़ाते है, उनके संस्थान से 93 से अधिक विवाहित महिलाओं के पतियों ने पत्नियों के पढ़ाई रद्द कर इनकी आगे की पढ़ाई से साफ कन्नी काट लिया है, हालांकि ज्यादातर के पतियों ने वजह साफ नहीं किया लेकिन यह सभी घटनाक्रम की जल्दबाजी व समय ने जाहिर कर दी व कुछ ने दबी जुबान इसी बात को कबूला। खान सर ने अपने ऑनलाइन इस मामले की गंभीरता को बताया। यह सिर्फ यहाँ तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसके इर्द गिर्द इलाहाबाद, गोरखपुर से भी इसी किस्म के मामलों ने खूब सुर्खियां बटोरी है।
मतलब, ज्योति मौर्य के मामले को केंद्र में रखते हुए महिलाओं के शिक्षा जैसे मुद्दों पर पुरुषों का सोचना, एक प्रकार से दाम्पत्य जीवन का अभिशाप बनाने का हरसम्भव प्रयास किया जा रहा। जिसमे दो व्यक्ति, शादी, विवाहेतर संबंध, धोखा, आरोप प्रत्यारोप जैसे शब्दों के केंद्रबिन्दु में रखते हुए अन्य महिलाओं को निशाना बनाया जा रहा। न्यूज इंडिया ऑफिसियल के अंदरूनी सर्वे में 71% व्यक्ति का यह मानना था की ज्योति मौर्य के मामला अन्य महिलाओं के लिए खतरे का प्रतीक है। यह मामला आये दिन नए आकार ले रहा।
दरअसल, यह एक प्रकार से गंभीर खतरा है, जिससे निपटने के लिए यह समझना बेहद जरूरी है कि कब तक एक खबर महज खबर बनी रहती है और कब वह किसी के भी आम जीवन का नासूर बन कर उसे पल भर में निगल सकती है, और इसलिए इस मामले में यह कहावत काफी प्रासांगिकता रखता है कि “ सच्चाई जितनी देर में फिते बांधता है, झूठ उतनी ही देर में दुनिया के चक्कर लगा लेती है।
-शुभम कुमार
Team Profile
-
Shubham Kumar, a disciple of journalism, hails from Patna, Bihar. He graduated from the prestigious Delhi School of Journalism, affiliated with the University of Delhi. Shubham is known for his candid and responsible writing style, displaying a firm grasp of topics related to policy, health, environment, and youth.
Advocating for increased youth participation in journalism, Shubham firmly believes in practicing reliable, rational, and fair journalism. He is deeply committed to upholding these principles. Shubham is convinced that in a democratic country, journalism should have the freedom to express, write, and think in the public interest, even while being cautious of actions that may undermine the fundamental pillars of democracy.
Latest entries
- News31 August 2023भारत में विज्ञान की राह में इतने कांटे क्यों? | चाँद पर हमारे कदम, फिर अनुसंधान व विकास में हम क्यों है बेदम?
- News22 July 2023Revolutionizing Gaming Education: Madhya Pradesh Unveils E-Sports Academy in collaboration with YouTube Sensation CarryMinati
- Hindi17 July 2023नारीवादी विचार पर हमले के लिए कैसे एसडीएम ज्योति मौर्य बनी मोहरा? अर्धसत्य जो छिपता जा रहा
- Education26 June 2023भारतीय प्रवासी दिवस: देश भर के प्रवासी शक्ति का गर्व और महत्व
Apni likhne ki bhasha me thodi si neutrality leke aye biased lag rha hai and vakyon ki ending me jaldbaji na karen unhe Sampurna likha kare baaki good job mudda achaa hai ispe baat hona jaruri hai
किसी एक घटना की वजह से समाज को अपनी राय नहीं बनानी चाहिए। इस घटना के सिर्फ एक पक्ष पर बात नहीं होनी चाहिए बल्कि दूसरे पक्ष पर भी बात होनी चाहिए। सभी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है और अपने हिसाब से सभी को अपने जीवन के लिए फैसले लेने की आजादी होनी चाहिए। किसी की व्यक्तिगत मसालों को हमें सामाजिक मसाला नहीं बनाना चाहिए।
जहां तक बात रही सोशल मीडिया कि तो हम सब इससे अंजना नहीं हैं कि यह किसी भी व्यक्ति को चांद मिनटों में नायक बना देता है तो किसी को खलनायक। अपने अपने चैनल, पेज, और अकाउंट पर अधिक से अधिक व्यू, सब्स्क्राइब बढ़ाने के लिए किसी भी ख़बर या विषय को अपने हिसाब से जोड़ -तोड़ कर परोसते हैं। इस मुद्दे को भी सोशल मीडिया पर इसी प्रकार से गलत – गलत ऐंगल देने की कोशिश की गई।
जी सर , आप का विचार इस मुद्दे पर सही प्रतीत होता है , आपका यह अमूल्य सुझाव वास्तव में तथ्यपरक है।
यह विस्तृत आर्टिकल पढ़ने के लिए हृदय से धन्यवाद सर।। भविष्य में भी आपका मार्गदर्शन मिलता रहेगा इसकी कामना करता हूँ।