क्या सरकार को मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगा देना चाहिए?

4

पूर्वोतर का एक राज्य मणिपुर जिसका अर्थ मणि की धरती यानि रत्नों की भूमि है, परंतु इसके उलट विगत दो महीनों से ये प्रदेश हिंसा का पर्याय बन चुका है। गृहयुद्ध जैसे स्थिति बनी हुई हैं, लोग एक दूसरे के जान  के दुश्मन बन बैठे हैं।

हिंसा का कारण – मणिपुर में मुख्यतः तीन समुदाय हैं- मैतई, नगा और कुकी, मैतई ज़्यादातर हिंदू हैं, मैतई मुसलमान भी हैं। जनसंख्या में भी मैतई ज़्यादा हैं लगभग 60 प्रतिशत, नगा और कुकी ज़्यादातर ईसाई हैं। नगा और कुकी  जनजाति में आते हैं, जिनकी संख्या कुल आबादी का 40 प्रतिशत है। मैतई समुदाय लगभग 10 सालों से जनजाति समूह में शामिल होने की मांग कर रहा हैं जिसके लिए समुदाय ने मणिपुर हाई कोर्ट में याचिका भी डाली हुई है। हाल ही में मणिपुर हाई कोर्ट ने मैतेई ट्राइब यूनियन की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार से कहा कि ‘वो मैतई समुदाय को जनजाति का दर्जा दिए जाने को लेकर विचार करे। 10 सालों से ये डिमांड पेंडिंग है, इस पर कोई संतोषजनक जवाब नहीं आता है, तो आप अगले 4 हफ्ते में बताएं। कोर्ट ने केंद्र सरकार की ओपिनियन भी मांगी थी। कोर्ट ने अभी मैतई समुदाय को जनजाति का दर्जा देने का आदेश नहीं दिया है, सिर्फ़ एक ऑब्ज़र्वेशन दी है। लेकिन ये बात सामने आ रही है कि कोर्ट के इस ऑब्ज़र्वेशन को ग़लत समझा गया। अगले दिन मणिपुर विधानसभा की हिल एरियाज़ कमेटी ने सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पास किया और कहा कि कोर्ट के इस आदेश से वे दुखी हैं, और इसके बाद पूरा राज्य दो हिस्सों में बट गया। उसके बाद 3 मई को एक रैली निकली गई “आदिवासी एकता रैली” और यहाँ से विवाद और हिंसा की शुरुआत हुई उसके बाद आज तक लगभग 100 लोग की मृत्यु तथा 9000 हजार लोगों की विस्थापित की खबरे हैं।

आरक्षण का विरोध क्यों?– जो पहले से जनजातीय हैं उनका राज्य में प्रतिनिधित्व न के बराबर है। जैसे कुल 60 विधायक में से जनजाति से महज 20 विधायक है| और पहले से  मैतई  समुदाय SC और OBC तथा साथ में EWS का लाभ मिल रहा हैं, इनकी भाषा को भी आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया हैं| जनजातियों का कहना है की ऐसे में अगर  मैतई समुदाय को जनजातीय में शामिल कर दिया जाएगा तो हमारे लिए कुछ भी नहीं बचेगा सभी संस्थों पर इनका आधिपत्य हो जाएगा और हमारा आस्तित्व ही खतरे में आ जाएगा।

केंद्र सरकार व राज्य सरकार हिंसा नहीं रोक पा रही हैं – केंद्र सरकार द्वारा गठित शांति समिति में पूर्व प्रशासनिक अधिकारी, शिक्षाविद, साहित्य जगत से जुड़े लोग, कलाकार, सामाजिक कार्यकर्ता और विभिन्न जातीय समूहों के लोगों को शामिल किया गया है। यह शांति समिति विभिन्न जातीय संगठनों से बात करेगी। साथ ही संघर्ष कर रहे लोगों के बीच शांतिपूर्ण बातचीत को बढ़ावा देगी। गृह मंत्रालय ने बताया कि शांति समिति सामाजिक सद्भाव और भाईचारे को भी बढ़ाने के लिए प्रयास करेगी परंतु अभी तक ऐसा कुछ होता हुआ नहीं दिख रहा हैं| मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने कहा है कि राज्य में हिंसा का शुरुआती दौर बेहद संवेदनशील और राजनीति से प्रेरित था, लेकिन अब क्या हो रहा है, हम कह नहीं सकते हैं। स्थिति बहुत अराजक है।

आगे की सुझाव– बहुत सारे पत्रकारों, विपक्षी नेताओ का कहना हैं की सरकार पूरी तरह से विफल हैं केंद्र सरकार को तत्काल प्रभाव से राज्य  सरकार को भंग कर देना चाहिए व राष्ट्रपति शासन लागू करना चाहिए ताकि हालात पर काबू पाया जा सके।

-अजय राज द्विवेदी

Team Profile

Ajay Raj Dwivedy
Ajay Raj DwivedyReporter

4 thoughts on “क्या सरकार को मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगा देना चाहिए?

  1. शानदार आलेख मणिपुर की मौजूदा स्थिति को समझने में सहायक , सबसे अलग जहां कई न्यूज चैनल इस संवेदनशील विषय के बारे में बतलाने से कतरा रहे है वहीं आपने आसान शब्दों में मणिपुर हिंसा के कारण , स्थिति एवं सरकार द्वारा शांति अभियान के लिए आगे राह का वर्णन किया है।

    इस तरह के विषयों पर लिखें नम्र निवेदन

    1. धन्यवाद आपका मैम, आप जैसी शिक्षिका का हमें आजीवन स्नेह,आर्शीवाद और मार्गदर्शन मिलता रहे 🙏

Leave a Reply