औरंगज़ेब की कब्र का विवाद, दंगे और आगजनी तक पहुँचा; कई जगहों पर हुआ पथराव और जलाई गईं गाड़ियां

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17 मार्च की देर रात नागपुर में दो समुदायों के बीच झड़प ने दंगे का रूप ले लिया। दंगे के चलते कई दुकानों, घरों और वाहनों में आगजनी की गई। देर रात 10:30 से 11:30 बजे के बीच हंसपुरी इलाके में एक अनियंत्रित भीड़ घुस आई, जिसने वहाँ पथराव करना शुरू कर दिया। साथ ही, वहाँ खड़ी गाड़ियों और दुकानों में आगजनी की। दंगा भड़कने के बाद पुलिस हरकत में आई और स्थिति को नियंत्रण में लेने का प्रयास किया। इस बीच, पुलिसकर्मियों पर उपद्रवियों ने हमला किया, जिससे कई अधिकारी और पुलिसकर्मी घायल हो गए। फिलहाल स्थिति नियंत्रण में है। पुलिस ने कई इलाकों में कर्फ्यू लगा दिया है और लगभग 65 उपद्रवियों को गिरफ्तार किया है।
सोमवार को औरंगज़ेब की कब्र का विवाद नागपुर में हिंसक रूप ले चुका था। नागपुर के महल इलाके से शुरू हुई हिंसा हंसपुरी तक फैल गई। कई घरों, वाहनों और एक क्लिनिक में तोड़फोड़ और आगजनी की गई। पुलिस ने बताया कि बीती रात 10:30 बजे से 11:30 बजे के बीच ओल्ड भंडारा रोड के पास हंसपुरी इलाके में भी झड़प हुई। स्थानीय निवासियों के अनुसार, एक अनियंत्रित भीड़ ने कई वाहनों को जला दिया और घरों तथा इलाके के एक क्लिनिक में तोड़फोड़ की। दंगाइयों ने लोगों के घरों पर भी पत्थर फेंके।
प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया (पीटीआई) समाचार एजेंसी के अनुसार, यह अफवाह फैली थी कि मुगल बादशाह औरंगज़ेब की कब्र को हटाने के लिए वीएचपी के आंदोलन के दौरान एक समुदाय की पवित्र पुस्तक को जला दिया गया। पुलिस ने बताया कि हिंसा के मद्देनजर शहर के कई इलाकों में कर्फ्यू लागू कर दिया गया है।
अब तक 65 गिरफ्तारियां
पुलिस ने महल इलाके में तलाशी अभियान के दौरान 65 लोगों को गिरफ्तार किया है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और नागपुर से केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने हिंसा के मद्देनजर शांति और सद्भाव बनाए रखने की अपील की है।
औरंगजेब की कब्र पर विवाद
नागपुर दंगे की जड़ें औरंगज़ेब की कब्र के विवाद से जुड़ी हैं। दरअसल, इस विवाद की शुरुआत फिल्म छावा से हुई थी। विक्की कौशल स्टारर फिल्म छावा, जिसमें छत्रपति संभाजी महाराज की जीवनी दिखाई गई है, में क्रूर बादशाह औरंगज़ेब द्वारा महाराज पर किए गए अत्याचारों और यातनाओं को प्रदर्शित किया गया है। वहीं से विवाद की शुरुआत हुई। एक पक्ष औरंगज़ेब के शासनकाल में हिंदुओं पर किए गए अत्याचारों और छत्रपति संभाजी महाराज पर की गई यातनाओं को लेकर आक्रोशित है, जबकि दूसरा पक्ष फिल्म को प्रोपेगेंडा बता रहा है और उनका मत है कि औरंगज़ेब एक अच्छा शासक था।
विवाद तब और गरमा गया जब समाजवादी पार्टी के नेता अबू आज़मी ने कहा कि, “औरंगज़ेब एक अच्छा शासक था। उसके शासनकाल में भारत सोने की चिड़िया था।” एक नेता द्वारा उस क्रूर शासक का महिमामंडन करना, जिसने कई हिंदुओं का कत्लेआम किया और कई हिंदू मंदिरों को ध्वस्त किया, पूरे समाज की भावनाओं को ठेस पहुँचाने वाला था। इसी तरह के कई बयानों की वजह से यह विवाद बढ़ता गया। इस विवाद में कुछ संगठन, जैसे विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल, ने औरंगज़ेब की कब्र को संभाजी नगर से हटाने की माँग की थी। कब्र को हटाने के लिए दोनों संगठनों ने धरना-प्रदर्शन किया। धरने के दौरान यह अफवाह फैल गई कि प्रदर्शन कर रहे संगठनों ने कुरान को जला दिया है। इसी अफवाह के बाद अलग-अलग इलाकों में पथराव और आगजनी शुरू हो गई।
औरंगजेब के शासनकाल में हिंदुओं की स्थिति
औरंगजेब की विवादास्पद प्रतिष्ठा का एक प्रमुख कारण उनकी हिंदुओं के प्रति धार्मिक नीति थी। उन्होंने भेदभावपूर्ण जज़िया कर फिर से लागू किया, जिसे हिंदू निवासियों को चुकाना पड़ता था। औरंगज़ेब इस्लाम की सख्त और रूढ़िवादी व्याख्या के लिए जाना जाता था। उन्होंने शरिया कानून लागू करने और पूरे साम्राज्य में इस्लामी प्रथाओं को फिर से स्थापित करने का प्रयास किया। इसके कारण हिंदू मंदिरों का विध्वंस हुआ, गैर-मुसलमानों पर भेदभावपूर्ण कर लगाए गए और धार्मिक अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न हुआ।
समकालीन ऐतिहासिक दस्तावेज़ों में उल्लेख किया गया है कि खंडेला, जोधपुर, उदयपुर और चित्तौड़ सहित कई स्थानों पर सैकड़ों हिंदू मंदिरों को औरंगज़ेब या उनके सरदारों द्वारा उनके आदेश पर ध्वस्त कर दिया गया था। सितंबर 1669 में, औरंगज़ेब ने वाराणसी में प्रमुख हिंदू मंदिरों में से एक, काशी विश्वनाथ मंदिर को नष्ट करने का आदेश दिया।
इतिहासकार अब्राहम एराली के अनुसार, “1670 में औरंगज़ेब ने उज्जैन के आसपास के सभी मंदिरों को नष्ट करने का आदेश दिया था,” और बाद में, “300 मंदिरों को चित्तौड़, उदयपुर और जयपुर के आसपास नष्ट कर दिया गया,” अन्य हिंदू मंदिरों को 1705 के अभियानों के दौरान कहीं और ध्वस्त कर दिया गया।
औरंगज़ेब की धार्मिक नीति के कारण उनका नौवें सिख गुरु, गुरु तेग़ बहादुर के साथ टकराव हुआ। उन्हें जब्त कर दिल्ली लाया गया और इस्लाम अपनाने का आदेश दिया गया। जब उन्होंने इसे स्वीकार करने से इनकार कर दिया, तो उन्हें यातनाएँ दी गईं और नवंबर 1675 में उनका सिर कलम कर दिया गया।
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